Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कि इन्हीं अतिशय पुण्यों के प्रभाव से 23वें तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ की वर्तमान समय में सर्वत्र सर्वाधिक महिमा और पूजा होती है। __एक समय सुवर्णबाहु देव ने जाना कि अब मेरा आयुष्य केवल छह मास शेष रह गया है। यहाँ से मैं वाराणसी नगरी में माता वामादेवी के पुत्र रूप में जन्म लूँगा। मेरे जन्म से माता को कैसा अनुभव होगा, जरा देखू। __ कौतूहलवश देव एक सुन्दर सलौने श्यामवर्णी शिशु का स्वरूप बनाकर माता के सामने आये। माता वामादेवी ने अद्भुत रूपशाली बालक को अपने सामने देखा तो उसके अंग-अंग आनन्द से पुलक उठे। आँखों से हर्ष बरसने लगा। वह एकटक शिशु का मुख निहारने लगी।माता के मुख पर हर्ष और आनन्द देखकर बालक-रूप देव का मन प्रसन्न हो गया। माता को नमन कर वापस अपने स्थान पर आ गये। छह मास बाद बीस सागरोपम का उत्कृष्ट आयुष्य पूर्ण कर चैत्र वदी 12 को प्राणत नामक दशवें स्वर्ग से च्यवन किया।
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Poन
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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