Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कमठ ने एक पत्थर की शिला उठाकर मरुभूति के सिर पर पटक दी। मरुभूति का सिर फट गया। खून की धारा बहने लगी। मरुभूति उठने की चेष्टा करने लगा तो फिर दूसरी शिला उठाकर उस पर प्रहार किया। मरुभूति सिसकता, तड़पता मर गया। _मरुभूति की हत्या करके भी कमठ का क्रोध शांत नहीं हुआ। प्रतिशोध की भावना से जलते उसने मरुभूति के मृत शरीर को ठोकर मारकर पर्वत से नीचे गिराया और मन में संकल्प किया-'इसी दुष्ट ने मुझे अपमानित कराया है। अगले जन्म में फिर इसका बदला लूँगा।'
एक दिन पोतनपुर में समंतभद्र नाम के ज्ञानी आचार्य पधारे। अरविंद राजा ने गुरु का उपदेश सुना तो उसे भी वैराग्य हो गया-"गुरुदेव ! मुझे भी आत्म- कल्याण का मार्ग बताइए।"
आचार्य का उपदेश सुनकर राजा ने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली। गुरु के पास ज्ञानार्जन कर तपस्या करने लगा।
_एक दिन अरविंद मुनि के मन में भावना जगी-'मुझे अष्टापद की यात्रा कर अपना जीवन सफल करना चाहिए।'
मुनि ने सागरदत्त नाम के सार्थवाह से कहा-"भद्र ! अष्टापद महातीर्थ की वन्दना करने से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है।"
सेठ ने पूछा-"महाराज ! उस गिरिराज पर कौन-से देव विराजमान हैं और किसने उनका बिम्ब भराया?" __ मुनि ने अष्टापद तीर्थ की महिमा बताई-"वहाँ पर आदिदेव तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव विराजमान हैं। इन्द्रदेव भी उनकी वन्दना करने जाते हैं। उनके पुत्र चक्रवर्ती भरत ने वहाँ पर चौबीस तीर्थंकरों की रत्नमय प्रतिमाएं स्थापित करवाईं। उस तीर्थराज की वन्दना करने वाला कभी दुर्गति में नहीं जाता। तीर्थ वन्दना करने से आत्मा दुःखों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है।"
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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