Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 208
________________ परिशिष्ट श्लोक को विस्मयोऽत्र जनपालक ! हे महेश ! त्वन्नाम कीर्तनरता यदि संतरन्ति। भक्ता अशेष कलुषादुपयान्ति पारम्, भव्या व्रजन्ति तरसाऽप्यजरामरत्वम्॥१॥ हे जनपालक ! भवतां सन्नामकीर्तनतल्लीनाः जनाः अपारसंसारसागरात् पारं गच्छन्तिचेत् किमाश्चर्यमत्र ? भवतां भक्ता राग-द्वेषादि-दोषेभ्यो रहिताः सन्तः स्वत एव * श्रीमन्मार्गानुगामिनो भूत्वा सद्योऽजरामरत्वं प्राप्य मोक्ष पदं लभन्ते।। हे जनपालक ! आपके पावन नाम का जप-संकीर्तन करने में तल्लीन * भक्तजन, इस अपार संसार-सागर के पार चले जाते हैं, मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वस्तुतः आपके भक्तजन, राग-द्वेष आदि दोषों से रहित होकर स्वतः आपके पावन मार्ग का अनुगमन करते हुए अजर-अमर पद प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। જનપાલક ! તમારા પાવન નામનાં જાપ-કિર્તન કરવામાં તલ્લીન ભક્તજન, આ અપાર સંસાર-સાગરની પાર ચાલ્યા જાય છે, મોક્ષ પ્રાપ્ત કરી લે છે તો તેમાં કોઈ આશ્ચર્યની વાત નથી. વસ્તુતઃ તમારા ભક્તજન રાગ-દ્વેષ વગેરે દોષોથી રહિત થઈને પોતે જ તમારા પાવન માર્ગનું અનુકરણ કરતાં અજર-અમર પદ પ્રાપ્ત કરી મોક્ષને પ્રાપ્ત કરી લે છે. O Janapalak ! The devotees absorbed in chanting and reciting your pious name cross this unending ocean of rebirths and get liberated. This is nothing astonishing. In fact, your devotees get free of faults like attachment and aversion and automatically follow the pious path shown by you to attain liberation and the status of eternality and immortality. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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