Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 212
________________ सम्यग् मया न रचिता तव देव ! पूजा, मन्त्रोऽपि नैव जपितःखलु शुद्धभावैः। जातोऽस्मि तेन जगदीश्वर ! कष्टपात्रं, यस्मात् क्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशून्याः॥३॥ हे जिनेश्वरदेव ! अहं यथाविधि श्रीमतां पूजनं न कृतवान् । अन्तर्भावनाशुद्धिपूर्वकं भवोदधितारकं तव नाममन्त्रमपि सम्यक् प्रकारेणैकाग्रतया नैवाऽजपम्। तस्मादेव कारणात् मन्येऽस्मिन् संसारे दुःखपात्रम् अभवम्। यदि भवतां पूजारचनां ध्यानं नाम संकीर्तन वा भावात्मकशुद्धिपूर्वक स्यात् तर्हि दुःखलेशोऽपि न स्यात्। सत्यमेव कथितं यत् भावरहिताः क्रिया में * नैव फलन्ति। * हे जिनेश्वर देव ! मैंने, आपकी विधिपूर्वक पूजा, अर्चना नहीं की है। अन्तःकरण के की भावनात्मक शुद्धि के साथ कभी परम चमत्कारी आपके नामरूपी मन्त्र का * जप भी नहीं किया है। अतएव मैं, वर्तमान समय में दुःखभागी हूँ। यदि मैंने आपकी पूजा, ध्यान, नाम, संकीर्तन आदि भावशुद्धिपूर्वक विधिवत् किया होता तो ये दुःख प्राप्त नहीं होते । सत्य कथन है कि भावरहित क्रियाएँ फलवती नहीं होती हैं। હે જિનેશ્વરદેવ!મે તમારી પૂજા, અર્ચના વિધિપૂર્વક કરી નથી.અંતઃકરણની ભાવનાત્મક શુદ્ધિની સાથે ક્યારેય પરમ ચમત્કારી તમારા નામરૂપી મંત્રનો જાપ પણ કર્યો નથી. તેથી જ વર્તમાન સમયમાં હું દુઃખી છું. મેં તમારી પૂજા, ધ્યાન,જાપ વગેરે ભાવશુદ્ધિપૂર્વક વિધિવત્ અને કર્યા હોત તો આ દુઃખ પ્રાપ્ત થાત નહીં. તેથી જ આ કથન સત્ય છે કે ભાવરહિત કરવામાં આવતી ક્રિયાઓ ફળતી નથી. O Jineshvar Dev! I have not done your worship and adoration following of the proper procedure. I have also never chanted your highly miraculous name with inner purity. Therefore, at the present time I am a sufferer of miseries. Re Had I done your worship, meditation, name-chanting, etc. with inner purity Y and following proper procedure I would not have been burdened with these miseries. It is, indeed, true that activities devoid of feelings fail to bring desired results. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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