Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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त्वां योगिनो जिन ! सदा परमात्मरूपमन्वेषयन्ति हृदयाम्बुज- कोशदेशे ।
पूतस्य निर्मलरुचेर्यदि वा किमन्यदक्षस्य संभविपदं ननु कर्णिकायाः । ।१४।।
हे प्रभो ! बड़े-बड़े योगी लोग अपने हृदय-कमल की कर्णिका (मध्य) में आपका ध्यान करते हैं। ठीक है; पवित्र और उज्ज्वल कांति वाले कमल के बीज का उत्पत्ति स्थान कमल की कर्णिका को छोड़कर अथवा शुद्धात्मा की खोज करने का स्थान, हृदय-कमल की कर्णिका को छोड़कर दूसरा क्या हो सकता है ? ।
હે પ્રભુ ! મોટા મોટા યોગીઓ પોતાના હ્રદય-કમળની કર્ણિકા (મધ્ય) માં આપનું ધ્યાન કરે છે. એ ખરું કે પવિત્ર અને ઉજ્જવળ કાંતિવાળા કમળના બીજનું ઉત્પત્તિ સ્થાન કમળની કર્ણિકાને છોડીને અથવા શુદ્ધાત્માની શોધ કરવાનું સ્થાન, હ્રદય-કમળની કર્ણિકાને છોડીને બીજું શું હોઈ શકે?
O Prabho! Great yogis meditate on your image in the pericarp of the lotus that is their heart. It is proper because where else to look for the place of origin of the glowing seed of lotus but the pericarp of lotus. Indeed, where else to look for the perfected soul but the pericarp of the lotus-heart.
चित्र - परिचय
जैसे श्वेत कमल के बीज उसके मध्य कणिका पर ही उत्पन्न होते हैं, वैसे ही योगीजन हृदय कमल के मध्य प्रभु का ध्यान करते हैं और उन्हें पाते हैं ।
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