Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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श्यामं गभीर
गिरमुज्ज्वलहेमरत्न
सिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुच्चैश्चामीकराद्रि शिरसीव नवाम्बुवाहम् ।। २३ ।।
हे प्रभो ! जब आप रत्नजड़ित स्वर्णमयी सिंहासन पर विराजमान होते हैं और गम्भीर वाणी से धर्मदेशना करते हैं, तब भव्य प्राणी रूपी मूयर, श्याम वर्ण वाले आपको बहुत ही उत्सुकता पूर्वक देखते हैं। मानो सुवर्णमय सुमेरु पर्वत के शिखर पर वर्षाकालीन श्याम मेघ घुमड़ता हुआ जोर-जोर से गरज रहा हो (प्रतिहार्य ५) ।
हे પ્રભુ ! જયારે આપ રત્નજડિત સ્વર્ણમયી સિંહાસન પર બિરાજમાન થાવ છો અને ગંભીર વાણીમાં ધર્મદેશના કરો છો, ત્યારે ભવ્ય પ્રાણી રૂપી મયૂર શ્યામ વર્ણના આપને જોઈને ખુશ થાય છે. લાગે છે, જાણે સુવર્ણમય સુમેરુ ના શિખર પર વર્ષાકાલીન શ્યામ મેઘ ઘેરાઈને જોરથી ગરજી રહ્યા છે. (प्रतिहार्य प )
O Prabho! When you sit on the gem studded throne in your Samavasaran and give your sermon in resonating voice, beholding your beautiful dark complexioned body the worthy are brimmed with joy. As if, like peacocks, they are witnessing dark and thundering fresh rain clouds hovering over the golden peaks of Sumeru mountain. (fifth divine felicitation)
चित्र-परिचय (प्रतिहार्य ५) सिंहासन
जैसे मेरु पर्वत के शिखर पर नीले-काले घुमड़ते, बरसते मेघ को देखकर मयूर प्रसन्न होता है ।
नील वर्ण से दैदिप्यमान प्रभु पार्श्वनाथ, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान होकर धर्मदेशना करते हैं तो उन्हें देखकर भव्य प्राणी उसी प्रकार प्रसन्न होते हैं ।
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