Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्राग्भार-संभृत-नभांसि रजांसि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि। छायाऽपि तैस्तव न नाथ ! हता हताशो, ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा ।।३१।।
हे प्रभो ! दुष्ट कमठ ने क्रोध में आकर आप पर भीषण धूल एवं पत्थर की वर्षा की, जिसके समूह से समग्र आकाश भर गया, परन्तु आपका कुछ भी नहीं बिगड़ा। आपकी छाया भी मलिन नहीं हुई, बल्कि वही दुरात्मा कमठ पापों के भार से दुष्कर्मों की धूल में धंस गया।
પ્રભુ ! દુષ્ટ કામઠે કોશમાં આવીને આપ પર ભીષણ ધૂળ અને પત્થરની વર્ષા કરી, જેના સમૂહથી સમગ્ર આકાશ ભરાઈ ગયું, પરંતુ આપનું કશું ન બગડયું. આપનો પડછાયો શુદ્વા ન ઢંકાયો, અને તે દુરાત્મા કમઠ પાપોના ભારથી દુષ્કર્મોની ખાઈમાં ખૂંપી ગયો.
O Prabho! That evil Kamath (a specific demigod) afflicted you with terrifying sand storm that covered every part of the sky but those particles of sand could not even touch your shadow. However, as a consequence of that evil deed Kamath's own soul was pushed into the ditch of karmic bondage.
चित्र-परिचय
पार्श्व प्रभु के ऊपर कमठ ने भीषण धूल वर्षा की परन्तु ध्यान मग्न भगवान का कुछ नहीं बिगड़ सका बल्कि कमठ अपने पापों के भार से उस धूल में लिप्त हो दब गया।
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