Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
मान
धन्यास्त एव भुवनाधिप ! ये त्रिसन्ध्यमाराधयन्ति विधिवद् विधुतान्यकृत्याः। भक्त्योल्लसत्-पुलक-पक्ष्मल-देहदेशाः, पाद-द्वयं तव विभो ! भवि जन्मभाजः।।३४।।
हे प्रभो ! संसार के वे ही प्राणी धन्य हैं, जिनके शरीर का रोम-रोम आपकी भक्ति के कारण उल्लसित एवं पुलकित हो जाता है और दूसरे सब काम छोड़कर आपके चरण-कमलों की विधिपूर्वक त्रिकाल उपासना करते हैं।
હે પ્રભુ ! સંસારના એજ પ્રાણીઓ ધન્ય છે, જેમના શરીરનાં રોમ-રોમ આપની ભક્તિને કારણે આનંદિત અને પુલકિત થઈ જાય છે અને બીજા બધાં કામ છોડીને આપના ચરણ કમલોની ત્રિકાલ ઉપાસના કરે છે.
O Prabho ! Revered are the devotees who worship your lotus-feet during all the three sections of the day leaving all other work and following the prescribed procedure. Indeed, blessed are those beings every pore of whose bodies is elated and delighted with the joy of devotion for you.
चित्र-परिचय
प्रातःकालः प्रक्षाल और धूप से, मध्यकाल नैवेद्य तथा फूल से, सायंकाल आरती करके प्रभु की उपासना करता भक्त।
संसार के भौतिक कार्य छोड़कर प्रभु उपासना को जाता भक्त।
AlI
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org