Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रस्तावना
कल्याण मन्दिर स्तोत्र का श्रमण संस्कृति में श्रद्धास्पद स्थान है। श्वेताम्बर-दिगम्बर उभयविध सम्प्रदायों में यह स्तोत्र अत्यन्त श्रद्धा, भक्ति एवं निष्ठा से आत्मसात् किया गया है।
वस्तुतः कल्याण मन्दिर स्तोत्र जन-जन के कल्याण का पावन धाम है। इसका एक-एक अक्षर & मन्त्रशक्ति से अनुप्राणित है। इसका चमत्कारिक प्रभाव भी जन-जन के मन में बसा हुआ है। है श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार यह कृति सिद्धसेन दिवाकर की मानी जाती है तथा दिगम्बर
मान्यता के अनुरूप आचार्य कुमुदचन्द्र की। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह रचना ग्याहरवीं शताब्दी की है।
प्रस्तुत स्तोत्र के भावपूर्ण वैशिष्ट्य को देखकर पूज्य आचार्यश्री सुशील सूरीश्वर जी म. ने श्री सुशील कल्याण मन्दिर स्तोत्र की रचना की है। स्तोत्र के मूल भाव तथा आत्मभक्ति भावना को एकीकृत रूप में प्रस्तुत करने के लिए आचार्यश्री ने वसन्ततिलका छन्द तथा कल्याण
मन्दिर स्तोत्र के चतुर्थ चरण को यथावत् प्रस्तुत करके पूर्ण सफलता प्राप्त की है। स्तोत्र का - प्रत्येक श्लोक भक्ति का अनुपम स्रोत है। एक-एक अक्षर आचार्यश्री की साधना, आराधना, जप * एवं तपस्या से अनुप्राणित है। * मैंने 'श्री सुशील कल्याण मन्दिर स्तोत्र' को अक्षरशः पढ़ा है तथा सूक्ष्मेक्षिका से देखा है,
जिससे मुझे यह ज्ञात हुआ है कि आचार्यश्री ने कल्याण मन्दिर स्तोत्र के प्रति अपनी अनन्य आस्था को प्रकट करने के लिए यह नूतन प्रयास किया है। इससे पूर्व भक्तामर स्तोत्र के सन्दर्भ में इसी प्रकार का अनूठा प्रयोग आप कर चुके हैं। आप महातपस्वी मनीषी आचार्य हैं। आपकी नवनवोन्मेषिणी प्रतिभा से अनेक ग्रन्थरत्न प्रकट हुए हैं। 'श्री सुशील कल्याण मन्दिर स्तोत्र' में सरलता, सरसता, भक्तिभावों की सहज स्फुटता के साथ-साथ लोककल्याण भावना का क्षीरसागर लहरा रहा है।
श्री सुशील कल्याण मन्दिर स्तोत्र का संस्कृत भावार्थ संस्कृत प्रेमियों के लिए हितावह है तथा हिन्दी व्याख्या हिन्दी भाषा प्रेमियों के लिए परमोपयोगी है। आचार्यश्री ने मूल लेखन के साथ-साथ व्याख्यात्मक लेखन द्वारा तो मानो सोने में सुगन्ध का संचार कर दिया है। श्री सुशील कल्याण मन्दिर स्तोत्र में कुल ५१ श्लोक हैं जबकि प्राचीन कल्याण मन्दिर श्लोक में कुल ४४ श्लोक । आचार्यश्री ने ७ श्लोकों के चतुर्थ चरण की आवृत्ति-सी की है। अतः ऐसा कोई श्लोक नहीं है, जिसमें कल्याण मन्दिर के श्लोक की चतुर्थ पंक्ति न हो। आचार्यश्री का सम्पूर्ण प्रयास भावग्राही दृष्टिगोचर होता है।
अन्त में प्रत्येक श्लोक पर आधारित नूतन ५१ मन्त्रों तथा यन्त्रों के माध्यम से आपने जो कौशल प्रस्तुत किया वह आपको मन्त्रद्रष्टा ऋषियों की पंक्ति में सहज रूप में स्थापित * करता है।
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