Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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__4. मन्त्र-यन्त्र-साधना के समय आलस्य, जंभाई, नींद, छींक, थूकना, गुप्तेन्द्रिय
स्पर्श, क्रोध एवं किसी से वार्तालाप नितान्त वर्जित है। 5. मन्त्रोच्चारण में मध्यम गति का आश्रयण करें। शीघ्रता या अति मन्दता से २
बचें। 6. मन्त्रों का गायन की रीति से जप न करें। 7. मन्त्र-जप के समय आसन की स्थिरता, रीढ़ की हड्डी को सीधा रखना __आवश्यक है तथा सिर आदि को न हिलायें । 8. साधक को भूमि या काष्ठफलक (पाट) पर सोना चाहिए। 9. ब्रह्मचर्य, गुरु-सत्संग, गुरु-सेवा, मौन, पापकर्म-त्याग, तपश्चरण, नित्य इष्ट
पूजा, प्रतिक्रमण, जपनिष्ठा, मन्त्रनिष्ठा आदि साधक के लिए वरदान सिद्ध ।
होते हैं। 10. शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि एवं स्वस्थता के लिए योगासन, प्राणायाम, __ ध्यान करना श्रेयस्कर होता है। 11. साधक की आस्था, श्रद्धा, भक्ति, निष्ठा एवं निरहंकारिता साधना में
संजीवनी का कार्य करती है। साधक प्रातःकाल पूरव दिशा अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन ** ग्रहण करें। शाम या रात्रि के समय पश्चिम दिशा का प्रयोग करें। विशिष्ट सिद्ध गुरुदेव के परामर्श के अनुसार दिशा का निश्चय करना श्रेयस्कर रहता है। विविधा
मन्त्रों एवं यन्त्र के अनुसार अलग-अलग दिशाओं का विधान है। साधक स्वेच्छा से * किसी दिशा के चयन की त्वरा न दिखायें। गुरुदेवों से परामर्श अवश्य लेवें । शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि
मन्त्र-यन्त्र की आराधना से पूर्व साधक को विधिवत् शारीरिक एवं मानसिक रूप * * से शुद्ध होना परमावश्यक है। उभय शुद्धि के बिना चित्त की एकाग्रता सम्भव नहीं है।
विधिवत् शुद्धि के लिए भी गुरुमुख से इन मन्त्रों का ध्वन्यात्मक बोध अर्जित करके साधकों को प्रयोग में लाना चाहिए।
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