Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जन्मान्तरेऽपि तव पादयुगं न देव ! मन्ये मया महितमीहित-दान-दक्षम्। तेनेह जन्मनि मुनीश ! पराभवानां, जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम्।।३६।।
__हे प्रभो ! समझ गया हूँ कि मैंने जन्म-जन्मान्तर में भी, मनोवांछित फल देने में समर्थ ऐसे आपके चरण-युगलों की उपासना नहीं की। यही कारण है कि मैं इस जन्म में हृदय को मथ देने वाले असह्य तिरस्कारों का केन्द्र बन गया हूँ।
હે પ્રભુ ! હું સમજી ગયો છું કે મેં જન્મ-જન્માંતરમાં પણ મનોવાંછિત ફળ આપવા સમર્થ એવા આપના ચરણ યુગલોની ઉપાસના નથી કરી. એ જ કારણ છે કે આ જન્મમાં હૃદયને માત દેવાવાળા અસહ્ય તિરસ્કારોનું કેન્દ્ર | બની ગયો છું.
O Prabho ! I have fully realized that I did not meditate upon your pious lotus-feet during my numerous rebirths, the lotus-feet that are the source of the desired fruits. That is the reason that I have become the target of intolerable insults.
चित्र-परिचय ___अष्ट मंगल युक्त भगवान के चरण कमलों की उपासना करते भक्त जन विपत्तियों से छुटकारा पाते हैं।
भगवान के नाम का स्मरण नहीं किया तो असहय तिरस्कार रूपी विपत्ती सहनी पड़ती है।
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