Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स्वेन प्रपूरित-जगत्त्रय-पिण्डितेन, कान्ति-प्रताप-यशसामिव संचयेन। माणिक्य-हेम-रजतप्रविनिर्मितेन,
साल-त्रयेण भगवन्नभितो विभासि।।२७।। हे भगवन् ! आप (समवरण में) अपने चारों ओर के माणिक्य, सुवर्ण और चाँदी से बने हुए तीन कोटों से बहुत ही सुन्दर लगते हो। मानो, आपके शरीर की कांति, आपका प्रताप और आपका यश ही तीनों जगत् में सर्वत्र फैलने के बाद आगे स्थान न मिलने के कारण आपके चारों ओर तीन कोट के रूप में पिण्डीभूत हो गया है।
हे भगवान ! मा५ (समवसरमां) मापनी यारे त२६ ना भाई, સુવર્ણ અને ચાંદીથી બનેલા ત્રણ પડથી ખૂબ જ સુંદર લાગો છો. જાણે, આપના શરીરની કાંતિ, આપનો પ્રતાપ અને આપનો યશ જ ત્રણે જગતમાં સર્વત્ર ફેલાઈને આગળ સ્થાન ન મળવાને કારણે આપની ચારે તરફ ત્રણ પડરૂપે પિન્ડીભૂત થઈ ગયા છે.
O Bhagavan ! You look glorious sitting inside the Samavasaran with three parapet walls exquisitely built of gold, silver and rubies. It appears as if the orbs of your radiance, your glory and your fame have crystallized into these three parapet walls after covering the three worlds and finding nothing more to illuminate.
| चित्र-परिचय
___ भगवान की कांति, प्रताप एवं यश तीनों जगत में फैलने के पश्चात् स्थान न मिलने के कारण चारों ओर तीन गड़ के रूप में विराजमान हो गये।
नीलवर्ण की कांति रूपी पहला नील रत्नों का गड़, प्रताप अग्नि रूपी दुसरा पीला स्वर्ण गड़, यश जैसा उज्जवल तीसरा चांदी का गड़।
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