Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुर-चामरौघाः । येऽस्मै नतिं विदधते मुनि पुंगवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुद्ध - भावाः ।। २२ ।।
हे प्रभो ! देवताओं द्वारा दुलाए जाने वाले पवित्र श्वेत चँवर पहले नीचे झुककर फिर ऊपर की ओर जाते हैं। भाव यह है कि जो भव्य आत्माएँ प्रभु के चरणों में नमस्कार करती हैं, झुकती हैं वे निश्चय ही शुद्ध स्वरूप प्राप्त कर ऊर्ध्व गति को प्राप्त होती हैं (प्रतिहार्य ४) ।
હે પ્રભુ ! દેવતાઓ દ્વારા ડોલાવવામાં આવતા પવિત્ર શ્વેત ચામર પહેલા નીચે નમીને પછી ઉપર તરફ જાય છે. તાત્પર્ય એ છે કે જે ભવ્ય આત્માઓ પ્રભુના ચરણોમાં નમસ્કાર કરે છે, ઝૂકે છે, તે નિશ્ર્ચય જ શુદ્ધસ્વરૂપ પ્રાપ્ત કરીને ઉર્ધ્વ ગતિને પ્રાપ્ત કરે છે. (પ્રતિહાર્ય ૪)
O Prabho! The movement of the whisks that the Gods in your attendance swing is first downwards and then upwards. This indicates that the worthy devotees who pay homage by bowing at the feet of Bhagavan are sure to achieve spiritual purity and attain higher status on rebirth. (fourth divine felicitation)
चित्र-परिचय (प्रतिहार्य ४) चँवर
समवसरण में देवताओं द्वारा ढुलाये श्वेत चंवर पहले नीचे की ओर जाते हैं फिर ऊपर उठते हैं ।
उसी प्रकार भव्य आत्माएँ प्रभु के चरणों में नमस्कार करने झुकती हैं और मोक्ष को प्राप्त करती हैं ।
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