Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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भोः भोः प्रमादमवधूय भजध्वमेनमागत्य निर्वृतिपुरी प्रतिसार्थवाहम्। एतन्निवेदयति देव ! जगत्त्रयाय,
मन्ये नदन्नभिनभः सुरदुन्दुभिस्ते।।२५।। हे प्रभो ! आकाश में सब ओर गर्जन करती हुई देव-दुंदुभि तीन जगत् को इस प्रकार सूचना देती है "ये भगवान पार्श्वनाथ मोक्षपुरी के बड़े सार्थवाह हैं। मोक्षपुरी की यात्रा के इच्छुक यात्रियो ! आलस्य त्यागकर इनकी शरण ग्रहण करो" (प्रतिहार्य ७)।
હે પ્રભુ! આકાશમાં બધી બાજુ ગર્જના કરતી દેવ-દુંદુભિ ત્રણે જગતને આ પ્રકારે સૂચના દે છે ? આ ભગવાન પાર્શ્વનાથ મોક્ષપુરીના મહાન સાર્થવાહ છે. મોક્ષપુરીની યાત્રાના ઈચ્છુક યાત્રિઓ ! આળસ ત્યાગીને તેમની शर। ग्रह। रो." (प्रतिहार्य ७)
O Naath ! The divine drums beating in the sky and reverberating in all directions appear to be informing all beings in the three worlds —“Bhagavan Parshva Naath is the ultimate guide for the goal of liberation (Nirvritipuri or the abode of liberation). All the worthy desirous of attaining liberation should abandon lethargy and seek his refuge.” (seventh divine felicitation)
चित्र-परिचय (प्रतिहार्य ७) देव दुंदुभि
प्रभु के समवसरण के ऊपर आकाश में चारों ओर देवताओं द्वारा देव दुर्दुभि बजाई जा रही है। यह देव दुर्दुभि तीनों लोकों मे प्राणियों को इस बात की सूचना देती है कि मोक्ष की यात्रा के इच्छुक भव्यजन, मोक्ष के सार्थवाह प्रभु पार्श्वनाथ की शरण ग्रहण करें। चित्र के बायी तरफ एक कोनों में तीनों लोक के प्राणी प्रभु को हाथ जोड़कर प्रणाम करते बताये गये हैं।
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