Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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चित्रं विभो ! कथमवाङ्मुखवृन्तमेव, विष्वक् पतत्यविरला सुरपुष्पवृष्टिः। त्वद् गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !
गच्छन्ति नूनमध एव हि बन्धनानि।।२०।। हे प्रभो ! आपके समवसरण में देवकृत पुष्प-वर्षा के फूल सब के सब अपने डण्ठल नीचे की ओर किये हुए ऊर्ध्वमुख ही पड़ते हैं। ठीक है, जब भी कोई सुमन (अच्छे मन वाले) आपके पास आते हैं तो उसके बन्धन सदा नीचे की ओर ही चले जाते हैं इसमें आश्चर्य ही क्या है ? (प्रतिहार्य २)।
હે પ્રભુ ! આપના સમવસરણમાં દેવકૃત પુષ્પ-વર્ષા ના ફૂલ બધાં જ પોતાની દાંડી નીચેની તરફ કરીને ઉર્ધ્વમુખ જ પડે છે. ઠીક છે, જ્યારે પણ કોઈ સુમન (સારા મનવાળા) આપની પાસે આવે છે, ત્યારે તેમના બંધન સદા નીચેની તરફ જ ચાલ્યા જાય છે, તેમાં આશ્ચર્ય જ ક્યાં છે? (प्रतिहार्य २)
O Prabho ! All the Parijat flowers (a type of lotus) of the divine shower of flowers over your Samavasaran (divine assembly) fall with their stems downwards and face up. It is not surprising, indeed, that when any person with a noble mind (su-man) comes near you his bonds always slide down. (second divine felicitation)
चित्र-परिचय (प्रतिहार्य २) दिव्य पुष्प वृष्टि
जैसे समवसरण में देवगण पुष्प वर्षा करते हैं तब पुष्पों के डंठल नीचे की ओर झुके रहते हैं।
प्रभु की स्तुति करने वाले सुमन (शुभ मन वाले) के बंध भी स्वतःही नीचे की ओर चले जाते हैं।
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