Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 10
________________ दो शब्द महानुभावो, 'श्वेताम्बर मत समीक्षा' पुस्तक तथा जैन मित्र आदि पत्रों में रेवतो का भगवान को दिया आहार अभक्ष था तथा और भी कई आरोप विश्व वन्द्य वीर भगवान पर पढ़कर रोमांच कांपने लगे। आक्षेपों को निर्मूल सिद्ध करने के लिए परम पूज्य, प्रातः स्मरणीय शतावधानीजी पंडित मुनि श्री रत्नचन्दजी स्वामी ने 'रेवती दान समालोचना' शीर्षक लेख लिखा, जो जैन प्रकाश के उत्थान ( महावीरांक ) में प्रकाशित हो चुका है। किन्तु लेख संस्कृत भाषा में होने के कारण आम जनता को लाभ कम दे सका । अतः सर्व साधारण के हितार्थ यह लेख हिन्दी भाषानुवाद सहित प्रकाशित किया गया है । लेख में स्वामीजी महाराज ने सप्रमाण, आगम, तर्क व शब्द शास्त्रानुसार विपक्षी समाज का भ्रम निवारण व समाज पर आरोपित कलङ्कों को निर्मूल सिद्ध कर दिया है और यह भली भाँति उल्लेखित है कि रेवती का दिया हुआ आहार कैसा था ? आगम व शब्द शास्त्रानुसार यह स्वयं सिद्ध है कि कपोत कुक्कुट, मार्जार आदि शब्द केवल पशु द्योतक ही नहीं, किन्तु बनस्पति द्योतक भी हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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