Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 78
________________ रेवती - दान- समालोचना ६३ मज्जार शब्द का अर्थ प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में तथा भगवती सूत्र के इक्कीसवें शतक में, मज्जार शब्द वनस्पति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ॥ ४१ ॥ कोई-कोई यह कहते हैं कि टीकाकारने अपर मुख से जो विरालिका कही है वही मज्जार नामक वनस्पति है ॥ ४२ ॥ प्रज्ञापना नामक उपाङ्ग सूत्र के प्रथम पद में तथा भगवती नामक पाँचवें अंग सूत्र में के इक्कीसवें शतक में 'मजार' शब्द वनस्पति अर्थ में विद्यमान है | आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के पृष्ठ ८०२ में इस प्रकार पाठ है - "अब्भसहवोयाणहरितगतं दुलेजगतणवत्थुलचोरगमज्जारपोइचिल्लिया” इत्यादि । प्रज्ञापना के प्रथम पद में वृक्ष के प्रकरण में "वत्थुल पोरगमज्जार पोइवल्लीय पालक्का” ऐसा पाठ है । यहाँ टीकाकार ने अपनी ओर से मार्जार शब्द का अर्थ नहीं लिखा है । बल्कि द्वितीय पक्ष के अन्तर्गत 'दूसरे कहते हैं' 'अन्य लोग कहते हैं' इस ढंग से दो अवान्तर पक्षों के मुख से 'मज्जार' शब्द की व्याख्या की है । वह इस प्रकार है " दूसरे कहते हैं कि मार्जार अर्थात् एक प्रकार की वायु उसे शान्त करने के लिए जो किया गया- पकाया गया हो, वह मार्जारकृत ।' कोई कहते हैं कि मार्जार अर्थात् विरालिका नाम की एक वनस्पति, उसके द्वारा जो किया-बनाया गया हो वह 'मार्जारकृत' । यहाँ दो अन्तर्गत पक्ष हैं। पहला पक्ष मार्जार शब्द को वायु-विशेष का वाचक मानता है और दूसरा पक्ष कहता है कि मार्जार का अर्थ विरालिका नामक वनस्पति है । यहाँ पर अन्य मुख से टीकाकार ने जो विरालिका नामक वनस्पति बताई है वही ( विडालिका ) इस प्रकरण में मार्जार शब्द का वाच्य भर्थ है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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