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रेवती - दान - समालोचना
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की नष्ट करने वाली है । तथा मुख के सुखने को, वात, कफ, कजइ, कजई, वमन, अरुचि, गुल्म, बवासीर शूल और मंदाि को नाश करने वाली है ।
इस प्रकार मांस का अर्थ फल का गूदा सिद्ध है । अतएव यहाँ " कुक्कुड मंसए" का अर्थ बिजौरे के फल का गूदा है ।। ४८-४९ ।।
प्रथम वाक्य का फलितार्थ...
पहले भगवान् महावीर ने यह कहा कि रेवती ने मेरे लिए दो को पकाये हैं वे ग्रहण करने नहीं है, क्योंकि वे -सदोष हैं ।। ५० ।।
योग्य
फल पकाये हैं वे दोनों आदि दोषों से दूषित
प्रथम वाक्य में सिंह
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गाथा पत्नी रेवती ने मेरे लिए दो कूष्माण्ड ग्रहण करने योग्य नहीं हैं। क्योंकि वे आधाकर्म हैं। वर्तमान शासन के स्वामी श्री महावीर ने अनगार से इस प्रकार कहा था । मूल पाठ इस प्रकार है-मम अट्ठ दुवे कवोयसरी उवक्खडिया तेहिं नो अट्ठो ।” प्रथम वाक्य का यही -समुदित अर्थ है ॥ ५० ॥
द्वितीय वाक्य का फ़लितार्थ
विरालिका कन्द के द्वारा जो गर्भ रेवती के घर कल उसके बाद ऐसा कहा ।। ५१ ।।
संस्कार किया हुआ, बिजौरे का पकाया गया है उसे ले आओ ।
रेवती के घर, बीजपुर नामक फल का गर्भ ( फल का मीतरी कम कोमल भाग ) जो विगलिका कन्द द्वारा संस्कार किया गया है और कल पकाया गया है, मौजूद है । उसे ले आओ । प्रथम
वाक्य के पश्चात्
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