________________
[ ५३ ] (शुक पक्षी) बेचनेवाला। देश काल की विशेषता से कोई २ शब्द अपने अर्थ की मर्यादा से बदल कर अन्यार्थ प्रतिपादक हो जाता है, अर्थात् यदि कोई शब्द किसी देश विशेष में किसी समय पक्षिविशेष वाचक प्रसिद्ध है तो वह ही शब्द किसी अन्य समय में या किसी अन्य देश में वनस्पति विशेष का वाचक होकर प्रसिद्धि पा लेता है। इसी प्रकार बहुत संभव है कि सूत्रकार के, समय में किसी देश में वनस्पति के अर्थ विशेष में अधिक प्रसिद्ध होने के कारण ही इन शब्दों का प्रयोग हुआ हो । और सूत्रकारों के लिये यह भी नियम है कि "सूत्रकारा नियोगपर्यनुयोगानहींअर्थात सूत्रकार से यह पूछने का किसी को अधिकार नहीं है कि, अमुक शब्द की योजना क्यों की और अमुक शब्द की क्यों न की । यह व्याकरण प्रसिद्ध नियम सब सूत्रकारों के साथ लागू है। इसलिए इस विषय में तर्क करना अति तर्क है यानि तक की मर्यादा से बाहिर है ।
अपना कर्तव्य तो यह है कि जिस शब्द का प्रयोग किया है वह प्रमाण पूर्वक उचित अर्थ में घटता है या नहीं ? इस बात पर विचार करना।
पंडितजीने यह भी प्रकट किया है कि भगवती सूत्र के इन शब्दों का सीधा सरल अर्थ बदलना ठीक नहीं, जब की वृत्तिकार श्री अभय देव सूरि भी एक पक्ष में उनका अर्थ पक्षी वाचक भी करते हैं-इसका उत्तर यह कि, वृत्तिकार श्री अभय देव सूरीने उक्त शब्दों का अर्थ पक्षो वाचक किया ही नहीं। यह उत्तर रेवतीदान
समालोचना ३१ वां और ३२ वां श्लोक उनकी टीका से स्पष्ट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com