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[ ८६ । कर श्वेताम्बर दिगम्बर की साम्प्रदायिक चर्चा में उतर गये हैं। प्रकृत निबंध का उद्देश्य तो केवल यह है कि रेवती गाथापत्नीने सिंह अणगार को दान दिया है; वह शुद्ध है, किंवा अशुद्ध ? कपोत, मार्जार, कुक्कुट, मांस आदि शब्दों का यहां पर वास्तविक अर्थ पक्षो है या वनस्पति ? महावीर स्वामी ने मांसाहार किया या नहीं ? इत्यादि आक्षेप अनेकों की ओर से हो रहे हैं। उनका समाधान करने के लिये ही उक्त निबंध की योजना की गई है। इसी लिये इस निबंध का नाम "रेवतीदान समालोचना" रक्खा गया है, न कि गोशालक कथा समालोचना ।
पंडितजी ने उपर्युक्त ध्येय के ऊपर यदि लक्ष दिया होता तो श्वेतांबर दिगम्बर की अप्रासंगिक ( साम्प्रदायिक ) चर्चा में नहीं उतरते। क्योंकि ऐसी चर्चाओं का आज तक अन्त नहीं हुआ। ऐसी चर्चाओं में केवल समय के अपव्यय के अतिरिक्ति कोई लाभ नहीं बल्कि उल्टा अन्दर ही अन्दर विक्षेप बढने के साथ साथ ईर्षा द्वेष की वृद्धि होती है। वर्तमान समय वैमनस्य बढाने का नहीं है, प्रत्युत परस्पर ऐक्य तथा प्रेम बढाने का है। दूसरी बात यह है कि, जिस सम्प्रदाय की समीक्षा या खंडन करना हो तो प्रथम उस सम्प्रदाय की परिभाषा से पूरी २ जानकारी होना अत्यावश्यक है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय की समीक्षा व खण्डन श्वेतांबर सम्प्रदाय को परिभाषासे ही हो सकता है, न कि दिगम्बर संप्रदाय की परिभाषा या अन्य दर्शन की परिभाषा से। इसी तरह से दिगंबर संप्रदाय को समीक्षा व खण्डन दिगंबर संप्रदायकी परिभाषा से ही हो सकता है, न कि श्वेतांबर सम्प्रदाय
को परिभाषा या अन्य दर्शन की परिभाषा से। समीक्षा करनेवाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com