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[ ८९ ) परंतु न मालूम पंडितजी ने बिना देखे भाले किस प्रकार ये आशंकायें उपस्थित कर दी । अस्तु ।
वस्तु स्थिति इस प्रकार है कि उपासक दशा के आठवें अध्याय में जिस रेवती का वर्णन आया है वह, राजगृही की रहने वाली महाशतकजी को पत्नी है। उसका पाठ निम्नलिखित प्रकार से है
"तत्थणं रायगिहे महासयए नाम गाहावई परिवसई । तस्स महासयस्स रेवई पामोक्खाओ तेरस भारियाओ होत्था ।" और श्री भगवती सूत्र में जिस रेवती का वर्णन आया है उसका पाठ इस प्रकार है:___ "गच्छहणं तुम सीहा ! मेंढिय गाम नगरं रेयतीए गाहावतिणीए गिहे"
(१) उपासक दशा में वर्णिता रेवती राजगृही को रहने वाले महाशतकजी की स्त्री परतन्त्र है और ( २ ) भगवतीजी सूत्र में वर्णन की हुई रेवती मेंढिक ग्रामनामा नगर की रहने वाली स्वतंत्र अर्थात् गृह स्वामिनी है। उपर्युक्त दोनों रेवती पृथक २ ग्रामों की रहने वाली होने के कारण पृथक २ ही हैं। उपासक दशा सूत्र में वर्णन की हुई "रेवती" मांसाहारिणी, क्रूर, हिंसक और अधमिणी है, जिसको पंडितजी भी स्वीकार करते हैं । परन्तु भगवतो सूत्र में वर्णन की हुई रेवती श्री भगवान महावीर स्वामो के चरणों में भक्तिभाव रखने वाली और सिंह अणगार को दान देनेवाली धर्मज्ञ है। उपासक दशा सूत्र में जिस रेवती का वर्णन आया है वह मर कर नरक में गई है और सिंह अणगार को दान देनेवाली जिस रेवती का वर्णन भगवतो सूत्र में आया है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com