Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 82
________________ रेवती-दान-समालोचना वह इस प्रकार मार्जाः-पु. रक्त चित्रक क्षुपे ए० नि०व० ६ । पूतिसारिकायाम् । वै० निघ । विडाले, अम० । खट्टाशे. हे. च. (कः) मयूरे त्रिका.पृ. ७४४ यहाँ रक्तातिसार, पित्त ज्वर और दाह रोग के प्रसंग में रक्तचित्रक वृक्ष उपयोगी नहीं है। क्योंकि यह रोग की प्रकृति से प्रतिकूल है, अर्थात् रोग का स्वभाव भी उष्ण है और इस वृक्ष का स्वभाव भी उष्ण है ॥ ४३॥ कउए शब्द का अर्थ धातुओं के अनेक अर्थ होते हैं, अतएव टीकाकार ने 'कउए' शब्द के संस्कार कियो हुआ और भावित किया हुआ, ऐसे दो अर्थ किये हैं ॥४४॥ कउए' यह प्राकृत भाषा का शब्द है। इसका संस्कृत भाषा में ‘कृतक' रूप होता है। कृत ही कृतक । यहाँ सार्थक में 'क' प्रत्यय हुआ है। टीका झार ने ही कृत शब्द के 'संस्कृत' तथा 'भावित' ये दो मर्य किये हैं। शंका-कृ धातु का अर्थ 'करना है। ऐसी दशा में उससे संस्कार या भावना का अर्थ कैसे ले सकते हैं ? समाधान-प्रत्येक धातु के अनेक अर्थ होते हैं; यह बात व्याकरण शास्त्र में प्रसिद्ध है ॥ ४४ ॥ कुक्कुड शब्द का अर्थ कुक्कुट शब्द का अर्थ सुनिषण्ण नामक शाक-वनस्पति और सेमल का वृक्ष, होता है। कुक्कुटी तथा मधुकुक्कुटिका का अर्थ है मातलिंग (बिजौरा)। टीकाकार के मत से बिजौरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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