Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 84
________________ रेवती-दान-समालोचना के अर्थ में कुक्कुट शब्द का भी प्रयोग होता है। स्वस्तिक (सुनिषण्ण ) यहाँ उपयोगी होता है परन्तु मांस शब्द निरर्थक बनता है। सेमल के वृक्ष में यद्यपि फल होते हैं परन्तु वह इस प्रकरण में उपयोगी नहीं है। हाँ, मातुलिंग (बिजौरा ) सब प्रकार प्रकरण में उपयोगी है अतः उसी अर्थ का आश्रय लेना चाहिए ॥ ४५-४६-४७ ॥ _ 'कुक्कुडमंसए' इस पद में आर्ष कुक्कुड शब्द की संस्कृत छाया कुक्कुट' है। कुक्कुट के अनेक अर्थ होते हैं, लेकिन इस प्रकरण में शाक या वृक्ष अर्थ ही उपयोगी है, अतः उसीको दिखलाते हैं। कुक्कुट शब्द सुनिषण्ण अर्थात् स्वस्तिक नामक व्यंजन उपयोगी शाक के अर्थ में है और उसका दूसरा अर्थ शाल्मलि (सेमल) का वृक्ष भी होता है। वैद्यक शब्द सिन्धु (पृष्ठ २५९ ) में लिखा है "कुक्कुरः (क) पु० । सुनिषण्ण शाके । भा. पू. १ भ. साकव. सुणसुणा रान्नाठ इति कोङ्कणे । शाल्मलि वृक्षे।" कैयदेव निघण्टु पृष्ठ १४६ में लिखा है६५ सुनिषण्णकः (शितिवार) (हिं.) शिरोभारी, चौपातया Marsilea quabifolia (बं.) शुषुनिशाक, A four leaved aquatic bot-herb है (म.) करडू cool, diuretic and astrigent, | (गु.) उटीगण, चतुष्पत्री, हरितक शीत, मूत्रल, ग्राही। ___सुनिषण्णक, सूचीपत्र, चतुष्पत्र, वितुनक, श्रीवारक, सितिवार, स्वस्तिक, कुक्कुट, सिति, शूस्या, थायस, ये सुनिShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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