Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 88
________________ रेवती-दान-समालोचना ७३ शब्द बन जाता है। अतएव वे पर्यायवाची हो सकते हैं। इस कारण जैसे मधुकुक्कुटिका शब्द का अर्थ बिजौरा है उसी प्रकार कुक्कुटी शब्द का अर्थ भी बिजौरा कोष से सिद्ध है। वैद्यक शब्द सिन्धु में कहा है "कुक्कुटो-पु० । ककुभपक्षिणि । तदण्डाकारकन्दे । मं० । स्वी । Silk cotton tree शाल्मलिवृक्षे । रा०नि० ध० ८ । भा० पू० ४ भ० मूत्राष्टकतैले । शितिवारके। वा० उ० ५ अ । उत्कटवृक्षे । उच्चरामूले । ' उच्चटा वहुलिङ्गी स्यात् सैवोक्ता कुक्कुटो क्वचित् ' । रवा ॥" ( पृष्ठ २५९) मधुकुक्कुटिका-(टी)-स्त्री। मातुलिंग वृक्षे, जम्बीरभेदे । 'महुर इति भाषा। गुणाः-मधुकुक्कुटिका शीता, श्लेष्मलास्य-प्रसादनी। रुच्या स्वादुर्गुरुः स्निग्धा, वातपित्तविनाशिनो ॥ राज, ३ प. ॥" (पृष्ठ ७०८) मातुलिङ्ग:-(कः)। पु०। (citrus anedica) छीलंग वृक्ष हि. विजौरा । बिजौरे के गुग बिजौरा कफ और वात को नाश करने वाला, पेट के कीडों का नष्ट करने वाला, दूषित रक्त विकार मिटाने वाला है। मातुलिंग फल के गण इस प्रकार हैश्वास खासी, तथा अचे को नष्ट करने वाला, तृष्णा का नाशक और कण्ठ को शुद्ध करने वाला दपिन, लघु एवं रुचिकारक है। सुश्रत सहिता पृ० ३२७, "विजौरा"मातुलिङ्ग श्वास, खांसी और अरुचि को हस्ने वाला, तृषा बुझाने वाला, कण्ठ शुद्ध करने वाला, लघु खट्टा, दापन तथा रुचिकारक होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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