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रेवती-दान-समालोचना
यहाँ पर आप्त वाक्य से कूष्माण्ड में शक्ति ग्रह होता है। आप्तवाक्य कौनसा है ? इस प्रश्न का समाधान यह है कि टीकाकार ने द्वितीय पक्ष को बताने वाला जो वाक्य टीका में दिया है, वही आप्तवाक्य है । कहां भी है-“अन्ये त्याहुः-कपोतकः-पक्षिविशेषस्तद्वद् ये फले वर्ण. साधात्ते कपोते-कूष्माण्डे हुस्वे कपोते कपोतके ते च ते शरीरे वनस्पति. जीवदेहत्वात् कपोतशरीरे, अथवा कपोतशरीरे इव धूसरवर्णसाधादेव कपोतशरीरे-कूष्माण्डफले एव।" ____ यदि इतने से भी संतोष न हो तो कपोत क्षरीर (कबूतर के शरीर) के रंग की समानता के कारण कूष्माण्ड फल में उसकी लक्षणा करनी चाहिए। लक्षणा भी शब्द की एक वृत्ति है और उससे भी अर्थ की प्रतीति होती है । कूष्माण्ड के गुण वैद्यक शास्त्र में प्रसिद्ध हैं । कहा भी है--
उनमें बाल और मध्यम कूष्माण्ड पित्त नाशक, कफ बढ़ाने वाला होता है । पका हुआ कूष्माण्ड लघु, उष्ण है, क्षार सहित दीपन और बस्ति को शुद्ध करता है।
-सुश्रुत संहिता पृ० ३३५ कूष्माण्ड शीतल, पौष्टिक, स्वादिष्ट, पाकरस, भारी, रुचिकारक, रूक्ष, दस्तावर, कम्प उत्पन्न करने वाला, कफवर्धक
और वातपित्त का नाशक है । कूष्माण्ड का शाक भारी है, सन्निपात ज्वर,आम, सूजन तथा अग्निदाह को मिटाने वाला है।
-कैयदेवनिघण्टु १० ११४ इससे यह अर्थ फलित होता है कि कूष्माण्ड का शाक ज्वर और दाह को शान्त करता है अतएव दो कूष्माण्डों का शाक व्यज्जन रेवती ने बनाया था॥४०॥
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