Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 56
________________ रेवती-दान-समालोचना ४१ मांस, रोग की प्रकृति के अनुकूल क्यों नहीं है ? मांस का स्वभाव उष्ण है। उससे पित्त का प्रकोप होता है, मल में रक्त गिरने की अधिकता होती है, अतएव मांस उस रोग की दवा नहीं हो सकता ।। २७ ॥ ____ शीत-जन्य रोगों की दवाई उष्ण स्वभाव वाली होती है, शीत स्व. भाव वाली नहीं। इसी प्रकार गर्मी से जो रोग उत्पन्न हुभा हो उसके लिए शीत स्वभाव वाली औषधि शान्ति जनक हो सकती है, गर्म स्वभाव वाली नहीं। गर्म स्वभाव वाली दवा तो उल्टी रोग बढ़ाने वाली होती है। वैद्यक शब्द सिन्धु कोष पृ० ७० में मत्स्य शब्द में और पृष्ठ ७३९ में मांस शब्द के प्रसंग में मत्स्यमांस और साधारण मांस रक्तपित्त जनक होने से उष्ण स्वभाव वाला बताया है इससे यह बात सिद्ध है कि मांस उष्ण रोगों का बर्धक है, नाशक नहीं। भगवान् महावीर स्वामी के शरीर में पित्तज्वर, रक्तपात और दाह ये सब उष्ण स्वभाव वाले रोग थे, ये उष्ण स्वभाव वाले मांस से घटते या उटे बढ़ते ? इसका निर्णय सहज ही हो सकता है। अतः पित्त के प्रकुपित होने तथा खून की अधिकता होने से मांस यहाँ किसी भी प्रकार औषध नहीं हो सकता । इस कारण इस रोग के प्रसंग में कपोत आदि शन्दों का मांस अर्थ करने में प्रकरणासंगति दोष आता है ॥ २० ॥ टीकाकार श्री अभयदेव सूरि का अभिप्राय: इस प्रकार मांसार्थ के बाधक प्रमाणों के मौजूद होने पर भी टीकाकार ने उस पक्ष का खण्डन क्यों नहीं किया ? ॥२८॥ ___ कपोत आदि शब्द मांस अर्थ के वाचक नहीं हैं, इस प्रकार मांसार्थ के निषेध में जो प्रमाण पहले बताये हैं, उनके होने पर टीकाकार का यह भावश्यक कर्तव्य था कि वे दूषित पक्ष का प्रमाण पूर्वक खण्डन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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