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रेवती-दान-समालोचना
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काली कापोतो का लक्षण
दूधवाली, रोमवाली, कोमल गन्ने के रस के समान रस चाली, कृष्ण कापोती कहलाती है।
कापोती के उत्पत्तिस्थान
कोशिकी नदी को पार करके, सञ्जयन्ती से पूर्व में, बांबियों से व्यास ३ योजन भप्रदेश है। वहां बांबियों के ऊपर सफेद कापोती होती है।। ___ कापोती शब्द सामान्य रूपमे सफ़ेद और काली दोनोंके लिए प्रयुक्त होता है, क्योंकि सामान्य शब्द से दोनों का ग्रहण हो सकता है ॥३८॥
शरीर शब्द का प्रयोजन
शरीर शब्दका प्रयोग वृक्ष वगैरहमें भी होता है,क्योंकि जिनेन्द्र भगवान ने उसके भी औदारिक आदि तीन अंग कहे हैं ॥३९॥
शंका-'दुवे काबोईओ उवक्खडियाओ' ऐसा पाठ हो हो, शरीर शब्द की क्या आवश्यकता है ?
समाधान-ऐसा न कहिए। शरीर' यह पाठ जो देखा जाता है सो इसको आवश्यकता है ही। 'शरीर शब्द साथ रहने से ही विशेषतया वनस्पति अर्थ में 'कावाई शब्द की सिद्धि होती है।
शंका-कैसे ?
समाधान-मूल (जड़) और पत्तों के साथ ही कापोती वनस्पति को सुश्रत में उपयोगी बताया है। सारी कापोती का उपयोग होने के कारग ही यहाँ शरीर शब्द का प्रयोग किया है। यदि 'कापोती' शब्द को पक्षी का वाचक माना जाय वह असंगत होगा, यह बात पहले ही बता चुके हैं। वनस्पति के शरीर में 'दो' का व्यवहार भी हो सकता है। इस प्रकार यह सब अर्थ संगत बैठता है।
शंका-वनस्पति का शरीर होता है, ऐसा कहने में क्या शास्त्र का प्रमाण है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com