Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ रेवती-दान-समालोचना १३ ......x.mmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimmmmmmmmm मलुयाकच्छ वन में रो रहा है। उसे बुला लाओ।" भगवान् की आज्ञा सुन कर श्रमण उसी समय वहाँ के लिए रवाना हो गए। वहाँ पहुँच कर सिंह अनगार को सावधान करके उनसे भगवान् का सन्देश कहा। सिंह अनगार गुरु-आज्ञा शिरोधार्य करके, मुनियों के साथ मालुयाकच्छ वन से शालकोष्ठ वन में आए और गुरुजी को वन्दना करके उनके पास बैठे। उपस्थित हुये सिंह मुनि को महावीर स्वामी ने इस प्रकार आश्वासन दिया ॥ ७ ॥ समीप में बैठे हुए सिंह मुनि को तसल्ली देते हुए गुरु यों बोले भद्र ! तू रोता क्यों है ? छह मास में मेरी मृत्यु नहीं होगी। मैं इस पृथिवी मंडल पर साढ़े पन्द्रह वर्षे तक मौजूद रहूँगा ।। ८॥ श्रीमहावीर, सिंह भनगार से कहते हैं-तेरा रोना व्यर्थ है, गेने का कोई कारण नहीं। अज्ञ लोग सत्य को नहीं जानते। यह अफवाह मिथ्या है । इस अफवाह को फैलाने वाला गोशाला का वचन भी मिथ्या है। जब कारण ही सत्य नहीं तो कार्य सत्य कैसे हो सकता है ? छह महीने में मेरी मृत्यु नहीं होगी। इस भूतल पर मैं साढ़े पन्द्रह वर्ष पर्यन्त विचरण करूँगा। तू विषाद न कर। कहा भी है-हे सिंह ! मंखलि पुत्र गोशाला के तप के तेज से मैं पराभूत नहीं हुआ हूँ और न छह माह में मेरी मृत्यु ही होगी। अभी मैं साढ़े पन्द्रह वर्ष तक और विचरूँगा॥ ८॥ जीवित रहने पर मी रोग का क्या होगा ? कहते हैं औषधि के योग से मेरा रोग शीघ्र दूर हो जायगा । प्रसन्न. होकर अभी रेवती श्राविका के घर जाओ ॥ ९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112