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रेवती-दान-समालोचना or ..... .........rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.....rrrrrrwww. तरह फल के गूदे अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। सब मार्जार, कुक्कुट और कपोत शब्द जीव को भाँति बनस्पति के अर्थ में भी प्रयुक्त होते हैं । इन शब्दों का ऐसा प्रयोग किस प्रकार होता है, यह बात आगे चलकर बतावेंगे। दो अर्थ या अनेक अर्थ वाले शब्द, सुनने वाले को अवश्य सन्देह उत्पन्न करते हैं अतः उन पर विचार करना चाहिए। ऐसी दशा में प्रसंग आदि से ही निर्णय हो सकता है। मान लीजिए किसी सेठ ने अपने नौकर से कहा-'सैन्धव' ले आओ। यह सुनकर वह सन्देह में पड़ जाता है कि नमक लाऊँ या घोड़ा ले आऊँ ? किन्तु प्रसंग का विचार करके वह निर्णय कर लेता है कि इस समय नमक की आव. श्यकता नहीं है क्योंकि सेठजी यात्रा कर रहे हैं, अथवा इस समय घोड़े की आवश्यकता नहीं क्योंकि भोजन का प्रसंग है । इसी प्रकार दो अर्थ वाले इन छह शब्दों को सुनकर श्रोतागण विचार में पड़ जाते हैं। जो सम्यग्दृष्टि और शास्त्र के ज्ञाता हैं वे प्रसंग के अनुसार सम्यम् रष्टि होने के कारण सम्यक् अर्थ का निश्चय कर लेते हैं किन्तु जो मिथ्या. दृष्टि हैं वे उलटा ही अर्थ ग्रहण करते हैं क्योंकि मिथ्यादृष्टियों का स्वभाव ही ऐसा होता है । नन्दी सूत्र में कहा है-"सम्यग्दृष्टि का श्रुत सम्यक श्रुत है और मिथ्यादृष्टि के लिए वही श्रुत मिथ्याश्रुत होता
मिथ्यादृष्टि क्या अर्थ लेते हैं १ सो बताते हैं
उलटी बुद्धि के लोग इन शब्दों को मांसार्थक मानकर, जैसे-तैसे शास्त्र को भी दूषित बताते हैं ॥ १४ ॥ .. जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि । सम्यग्ज्ञान, दर्शन से जिनका अन्तःकरण संस्कृत नहीं है ऐसे कोई-कोई लोग प्रकरण आदि की परवाह न करके,
शुब अर्थ को त्याग कर. उपर्युक्त छह शब्दों का अर्थ प्राणीजन्य मांस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com