Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 44
________________ रेवती-दान-समालोचना rrrrrrrrrrmmmmmmmmmmmmm "तुझे ताड़ी सुरा-मादिरा बहुत प्रिय थी ऐसा कह कर परमाधामी ने मुझे जलता हुआ रुधिर और चीं पिलाई" (७१) और भीसूत्रकृतांग सूत्र में, मांसभोजो मनुष्यों को आर्द्रकुमार ने अनार्य कहा है ॥ १९॥ सूयगडांग नामक दूसरे अंगसूत्र में, छठे अध्ययन में बौद्धों का और आर्द्रकुमार का संवाद है। बौद्ध मांस भक्षण को कर्मबन्ध का कारण नहीं मानते । आर्द्रकुमार उनसे कहते हैं "हम प्रभूत मांस-भक्षण करते हुए भी कमों से लिप्त नहीं होते" ऐसा वही कहते हैं जो अनार्य धर्म वाले हैं, स्वयं. अनार्य और बाल हैं तथा जो रसों में श्रासक्त हैं।" ॥३८॥ "जो मांस आदि का भोग करते हैं और यथार्थता को न जानते हुए पाप का सेवन करते हैं। कुशल मनुष्य उसकी इच्छा भी नहीं करते । मांस का समर्थन करने वाले बचन भी मिथ्या ही हैं" ॥३६॥ मांस भक्षक लोग अनार्य हैं, बाल हैं, रसलोलुपी हैं और अनार्यधर्मी हैं, इन चार विशेषणों से मांस-भोजन की सर्वथा निन्दनीयता दिखलाई गई है। बुद्धिमान् पुरुष तो उसकी इच्छा भी नहीं करते । मांस का प्रतिपादन करने वाली वागी भी मिथ्या ही है। यह सब वर्णन मांसाहार के निषेध के लिए पर्याप्त हैं। इसके टीकाकार ने इस विषय के अन्य शास्त्रों के भी प्रमाण दिये हैं। वे यह हैंShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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