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रेवती-दान-समालोचना
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फिर भी
उत्तराध्ययन सूत्र में भी मांसभोजी को दुःख और दुर्भाग्य देने वाला दुर्गति का बन्ध आदि फल दिखाया है ।। १८ ॥
दूसरे मूल सूत्र श्रीमदुत्तराध्ययन में, अनेक स्थलों पर मांसाहार करने वाले को दुःख और दरिद्रता जनक दुर्गति का बन्ध आदि फल होता है, ऐसा कहा गया है।
पाँचवें अध्ययन को नववर्वी गाथा में लिखा हैहिंसक, वाल, मृषावादी, मायावी, चुगलखोर, और शठ मनुष्य मदिरा और मांस का भोगना श्रेयस्कर है, ऐसा मानता है । ( ५-६)
मदिरा-माँस-भोजी का बालमरण होता है-पण्डित मरण नहीं होता और बालमरण से दुर्गति ही होती है, अतएव मांसाहार को दुर्गति का कारण यहाँ बताया है । सातवें अध्ययन में कहा है
स्त्री आदि विषयों में आसक्त, महा आरंभी, महा परिग्रही, दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाला, मादरा और मांस का सेवन करता हुआ डूबता है । (७-६ )
यहाँ भो मदिरा-माँस-भोजी को नरकायु का बन्ध होना प्रगट किया है । उनीसवें अध्ययन में कहा है
"तुझे मांस बहुत प्रिय था ऐसा कह कर परमाधामी ने मुझे मेरे हो शरीर के मांस के टुकड़े का सोल्ला बना कर
अनेक बार खिलाया"। (७०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com