Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ रेवती - दान- समालोचना " जिसका मांस मैं इस लोक में खाता हूँ, मां (मुझको) स ( वह ) परलोक में खायगा । यही मांस की मांसता हैअर्थात् इसीलिए उसे 'मां-स' कहते हैं । “जो जिसके मांस को भक्षण करता है, उनके अन्तर को देखो—एक की तो क्षणिक तृप्ति होती है और दूसरा बेचारा प्राणों से मुक्त होता है" ॥ २ ॥ “मांस-भक्षियों की अत्यन्त घृणास्पद और दुःख देने वाली दुर्गति को सुन कर जो पुरुष पुण्योदय से मांस भक्षण का त्याग करते हैं, वे दीर्घायु पाते हैं, नरोिग होते हैं, खूब भोगोपभोग और धर्म को प्राप्त करने वाले मनुष्यों में तथा क्रमशः स्वर्ग और मोक्ष में जाते हैं ॥३॥ इस प्रकार के अनेक प्रमाण मौजूद होने पर भी विस्तार के भय से यहाँ सिर्फ दिग्दर्शन मात्र कराया गया है ॥ १९ ॥ ३१ श्राचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध आदि में मांसार्थ के साधक पाठ भी हैं। आप बाधक प्रमाणों की तरह साधक प्रमाणों को क्यों नहीं स्वीकार करते ? इसका समाधान - चारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का पाठ नहीं करता, क्योंकि भागमान्तर के साथ पाठों का अस्तित्व विचारणीय है | २० | मांसार्य को सिद्ध विरोध होने से उन आचारांग के द्वितीय भ्रतस्कन्ध को वहाँ 'आचार द्वितीय' कहा है। आचारोग के दो अतस्कन्ध है। उनमें से द्वितीय तसे जिगर बा• बाब समाने से जं पुण आजा साइमं वा अच्छा का” इत्यादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112