Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 17
________________ ॥ ॐ श्रई ॥ रेवती- दान-समालोचना लेख :---- शतावधानी पंडित महाराज श्री रत्नचंद्रजी स्वामी मंगलाचरणम् । प्रारीप्सितनिबन्ध परिसमाप्त्यर्थमिष्टदेवतानमस्कारात्मकमङ्गलमातनांति नमस्कृत्य महावीरं, भवपाथोधिपारगन् । रेवतीदत्तदानार्थे, याथातथ्यं विचिन्त्यते ॥ १ ॥ नमस्कृत्येति — उपपदविभक्तेः कारक विभक्तेर्बलीयस्त्वान्महावीरमित कारकविभक्तिर्द्वितीया । श्रन्येष्वपीष्टदेवेषु सत्सु विशेषतया महावीरस्योपादानं वर्तमानशासनपतित्वात्प्रकृतनिबन्धेन तस्य सम्बन्धाश्च । युद्धविजेता वीरः, कर्मयुद्धविजेता तु महावीरः, वीरेष्वपि महान् वीरः, अतुलपराक्रमदर्शको वर्धमानस्वामीत्यर्थः । क पराक्रम दर्शित इत्यत आह-भवेति, भवः संसारः स एवागाधत्वात्याथोधिः समुद्रस्तस्य पारमन्तं गच्छतीति भवपाथोधिपारगस्तम् । - रेवतीति, रेवतख्या मेरिढकग्रामनिवासिनी काचिद् गृहिणी, यया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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