Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 24
________________ रेवती - दान - समालोचना लोकापवाद से मुनियों को शोक इस अफवाह से मुनिजनों की भी चित्तवृत्ति कैसी हुई, सो कहते हैं - इस अपवाद के स्मरण से, वन में ध्यान करने वाले सिंह नामक नगर के मन में चिन्ता जन्य पीड़ा हुई ॥ ५ ॥ मेंढक ग्राम से ईशान कोण में विद्यमान शालकोष्ठ उद्यान के पास मालय कच्छ नामक एक वन था । वहाँ भगवान् महावीर अपने शिष्यों के -साथ पधारे । भगवान् के शिष्य मुनि-गुण से युक्त सिंह अनगार वन के एक एकान्त प्रदेश में ध्यान में लीन हुए। उस समय पहले सुने हुए उस लोक प्रवाद का उन्हें रमरण हो आया । उनके मन में अत्यधिक दुःख हुआ । जैसे व्यवहार में लोकापवाद असह्य होता है वैसे ही धर्मा पुरुषों को धर्मं विषयक अपवाद भी असह्य होता है । इसीलिए कहा है कि "शुद्ध कार्य भी यदि लोक विरुद्ध हो तो नहीं करना चाहिए ।" कहा भी है-उस काल में, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के शिष्य, भद्र स्वभाव वाले, बिनयी सिंह अनगार मालुयाकच्छ के निकट मौजूद, षष्ठभक्त करते हुए, बाहें ऊपर को फैलाकर तपस्या करते हुए विचरते थे । ध्यान-मन सिंह अनगार को ऐसा विचार आया कि मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, श्रमण भगवान् महावीर के शरीर में विपुल रोगआतंक प्रकट हुआ है । ( यावत् ) छद्मस्थावस्था में शरीर त्याग करेंगे. ऐसा अन्य तैर्थिक कहेंगे । सिंह अनगार इस महान् मानसिक दुःख -बड़े दुःखी हुए और आतापन- भूमि से पीछे लौटे ॥ ५ ॥ से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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