Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ १३ ] तैयार किया गया है, या कुछ पृष्ठ उनके व्यक्तित्व को रेखांकित करने के लिये अर्पित किये गये हैं, इसलिये भले ही इसे किसी व्यक्ति का स्मृति ग्रन्थ कहा जाए, परन्तु जब हम लगभग पन्द्रह सौ पृष्ठों में बिखरी हुई चारों अनुयोगों की इस बहु-पायामी सामग्री को दृष्टि में लाते हैं तब हम इसे आगम-ग्रंथ से कम कुछ कह ही नहीं सकते।
___ वास्तव में, यह ग्रंथ अभिनन्दन ग्रंथों या स्मृति ग्रंथों की वर्तमान परम्पराबद्ध प्रणाली के बीच एक नई दिशा, एक नई कल्पना हमारे सामने प्रस्तुत करता है । प्रायः स्मृति ग्रंथ किसी महापुरुष को स्मरण करने के लिए निकाले जाते हैं, परन्तु उनकी संयोजना में कुछ नवीनता लाकर उस महापुरुष का समाज के लिये जो अवदान है, उसे पुनर्वितरित भी किया जा सकता है, यह बात इस ग्रंथ के माध्यम से पहली बार सामने आती है।
सम्पादक द्वय-पं. जवाहरलालजी और डॉ. चेतनप्रकाशजी पाटनी का यह प्रयास सफल है, सार्थक है और सराहनीय है। दिनांक ९-९-८८
-नीरज जैन, सतना (११) अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद् के अध्यक्ष, जैन जगत् के प्रकाण्ड पण्डित, मर्मज्ञ मनीषी, स्पष्ट वक्ता, अध्यात्म तथा आगम के परिनिष्ठित विद्वान् पण्डित रतनचन्दजी मुख्तार ने असंख्य बाधाओं का सामना करके भी पार्षमार्ग की महती प्रभावना की। किसी ने ठीक ही कहा है-जिस जीवन में आदर्श के प्रति निष्ठा और चरित्र में दृढ़ता नहीं होती, वह जीवन प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ नहीं सकता।
___ स्व. पण्डितजी द्वारा तत्त्व जिज्ञासुओं की जिन शंकाओं का पागम के परिप्रेक्ष्य में समाधान किया गया था, उन्हीं को प्रस्तुत ग्रंथ में विद्वत्वर्य डॉ. चेतनप्रकाश पाटनी, जोधपुर तथा सिद्धान्तविद् पं० जवाहरलाल शास्त्री, भीण्डर ने एकादश वर्ष में अथक परिश्रन और विशिष्ट क्षयोपशम के फलस्वरूप सम्पादित किया है।
यह ग्रंथ विद्वानों और स्वाध्यायी मनस्वी महानुभावों के लिये अत्यधिक उपयोगी है । तत्त्वजिज्ञासुत्रों की जिज्ञासामों को शान्त करने में यह प्रबल निमित्त बने, यही शुभ कामना है। दिनांक २५-१-८९
-डॉ. श्रेयांसकुमार जैन, बड़ौत (मेरठ)
स्वयम्भू पण्डित श्रद्धय मुख्तार सा. का वैदुष्य अगाध था। वे ज्ञानानुकुल प्राचरण में भी अग्रणी थे । उन्होंने जिस खूबी के साथ स्वाध्यायी-जनों की शंकाओं का सप्रमाण समाधान प्रस्तुत किया है, वह उनके दीर्घकालीन चिन्तन-मनन और स्वाध्याय का जीवन्त निदर्शन है ।
प्रस्तुत ग्रंथ-पं. रतनचन्द जैन मुख्तार : व्यक्तित्व और कृतित्व जिज्ञासुप्रों की शंकाओं के समाधान हेतु एक उपयोगी बृहत् कोश बन गया है। यह जैन वाङमय से चुने गये पुष्पों का मोहक गुलदस्ता है। यह जिनवाणी माँ के सपूतों को प्रकाशस्तम्भ का कार्य करेगा । सम्पादकों का श्रम स्तुत्य है। दिनांक १०-१-८९
-डॉ. कमलेशकुमार जैन, वाराणसी
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