Book Title: Puratana Prabandha Sangraha Author(s): Jinvijay Publisher: ZZZ UnknownPage 40
________________ प्रास्ताविक वक्तव्य। १७ ६९. (३) BR संज्ञक संग्रह पाटणके सागरगच्छके उपाश्रयमें सुरक्षित ग्रन्थ-भण्डारमेंसे हमें इस संग्रहकी प्राप्ति हुई है । भण्डारकी सूचिमें इसका नाम आशराजादिप्रबन्ध लिखा हुआ है । वर्तमान सूचिके मुताबिक, इसका डिब्बा नं. १८, और प्रति नं० ५० है। इसकी पत्रसंख्या कुल ७ है । पत्रोंकी नाप लंबाईमें प्रायः १० इंच और चौडाईमें ४३ इंच है । इसमें सब मिला कर कोई २३ प्रबन्ध लिखे हुए हैं जिनमेंसे ५-६ प्रबन्धोंको छोडकर शेष सब प्रायः उपर्युक्त B संग्रहके साथ पूर्ण समानता रखते हैं। इस संग्रहका लिपिकर्ता पंडित रविवर्द्धन गणि है । यद्यपि लेखकने इस प्रतिके लेखनकालकी सूचक कोई मिति आदि नहीं दी है-केवल 'लिखितं पं० रविवर्द्धनगणिभिः।' इतना लिखकर अपना नामनिर्देश मात्र किया है-तथापि इनके हाथके लिखे हुए बहुतसे ग्रंथ और पत्रादि पाटण वगैरहके भण्डारोंमें जो हमने देखे हैं और जिनमेंसे कुछ पर संवत् मिति आदिका भी उल्लेख किया हुआ मिलता है, उससे इनका अस्तित्व विक्रमकी १८ वीं शताब्दीके पूर्व भागमें निश्चिततया ज्ञात होता है। इस कारणसे, यह संग्रह कोई ढाई सौ पौनेतीन सौ वर्षका पुराना लिखा हुआ कहा जा सकता है। विशेषतया B संग्रहके साथ समानता रखनेसे, और पं. रविवर्द्धनका लिखा होनेसे इस संग्रहका संकेत हमने BA अक्षरोंसे किया है। इसमें संग्रहित प्रबन्धोंके क्रमादिका सूचन करनेवाली संपूर्ण तालिका इस प्रकार है। B संज्ञक प्रतिमें लिखित प्रकरणानुक्रम प्रस्तुत पुस्तकमें मुद्रित क्रम प्रबन्धनाम पत्र. पृष्ठि. पंक्ति Bसंग्रहका क्रमांक प्रबन्धक प्रकरणांक पृष्ठांक १ कपर्दियक्ष-जावडिप्रबन्ध प्रा० १...२...१ ६२२४ स. १...२...१७ २ आशराजप्रबन्ध (प्रा.१...२...१७ . ३५६११६ स० १...२...२१ ३ भिर्तृहरोत्पत्तिप्रबन्ध प्रा०१...२...२२ स. २.......३ ४ मानतुङ्गसूरिप्रबन्ध प्रा०२...१...३ स० २...१...२५ १४. ६ ३२४-६२७ ५ अभयदेवसूरिप्रबन्ध प्रा०२...१...२५ २१४-१५ ।स. २...२...१५ ६ *मोरनागप्रबन्ध [प्रा० २...२...१५ स०२...२...१८ ७ लूणिगवसहीप्रबन्ध [प्रा० २...२...१८ स० २...२...२५ ८ अम्बिकादेवीप्रबन्ध प्रा० २...२...२५ स० ३...१... ३ ६२२० ९ दरिद्रनरक्रयप्रबन्ध प्रा० ३...१...३ ६४ स० ३...१...११ १० मनइ मन इति प्रबन्ध प्रा० ३...१...११ स० ३...१...१४ ११ नागार्जुनप्रबन्ध प्रा. ३...१...१५ . ४३ ६२०८-०९ ९१ स० ३...२... ३ १२ महं सांतूप्रबन्ध प्रा० ३...२... ३ ४४ १९ स०३...२...१२ ५ ८ 1 इस प्रबन्धकी समाप्तिके बाद प्रतिमें यहां पर वे २ पद्य लिखे हुए हैं, जो प्रस्तुत पुस्तकके पृ. ३१, पद्यांक ९७-९८ के साथ मुद्रित हैं । इनमें आरासणके नेमिनाथ चैत्यकी प्रतिष्ठाका वर्णन है। यह प्रबन्ध, प्रबन्धचिन्तामणिगत इसी नामके प्रबन्धकी प्रायः शब्दशः प्रतिकृति है इसलिये इसको प्रस्तुत संग्रहमें मुद्रित नहीं किया गया । देखो, ऊपर पृ० १२ की 3-6 वाली टिप्पनी । * देखो, ऊपर पृ० १३ पर की गई इसी प्रबन्ध परकी टिप्पनी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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