Book Title: Puratana Prabandha Sangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 47
________________ २४ 성성성 영성 영성 영 * * * * * * * * * * ss * * * * * * पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रहः। १२९ खरतराचार्यप्रदर्शितदयावृत्तान्त स० १४२ २ ८ ६२५६ १३० चारणकृतयशोवीरप्रशंसावृत्तान्त स ,, २ ११ ६१११४ १३१ राज्ञीभ्रातृवुद्धिपरीक्षावृत्तान्त स० ६२५७ १३२ पं० रामचन्द्रविपत्तिवृत्तान्त १३३ वस्तुपालसैनिकभूणपालवृत्तान्त १३४ सोमेश्वरकृतवस्तुपालस्तुति १३५ वामनद्विजकृतवस्तुपालचाडावृ० १३६ वस्तुपालकारितमूलराजहस्तच्छेदवृ० स० ,, ६१७४ १३७ पिप्पलाचार्यप्रदर्शितविनोददानवृ० स० ,, १३८ हरदेवचाचरीयाकवृत्तान्त ६१७६ १३९ पाटलीपुरीयनन्दनृपवृत्तान्त स , २ १५ ६१८९ १४० जयचन्द्रनृपवृत्तान्त स. १४४१ ७ २०६ - पातसाहिनामावलि स° , २ ७ ६१२. (५) Ps संज्ञक संग्रह __पाटणके संघके नामसे प्रसिद्ध ग्रन्थ भण्डारमें ६ पन्नोंकी एक प्रति हमें मिली जिस पर वस्तुपाल-तेजःपालप्रबन्ध ऐसा नाम लिखा हुआ है । पाटणके संघका नाम सूचित करनेके लिये हमने इसका संकेत Ps अक्षरसे किया है । नाम मात्र देखनेसे तो ऐसा भ्रम होता है कि यह वही प्रबन्ध होगा जो राजशेखर सूरिके प्रबन्धकोषमें अन्तिम भागमें प्रथित है; क्यों कि इस प्रबन्धकी स्वतंत्र प्रतियां भी कहीं कहीं दृष्टिगोचर होती हैं। लेकिन प्रतिका प्रत्यक्ष अवलोकन करने पर विदित हुआ कि यह प्रबन्ध राजशेखरकृत प्रबन्धसे सर्वथा भिन्न है। उतना ही नहीं परंतु इस प्रबन्धके प्रणयिताका उद्देश तो उक्त प्रबन्धकोषगत वस्तुपाल-तेजपाल प्रबन्धमें जो जो बातें अनुल्लिखित रहीं हैं, खास करके उन्हींका संग्रह करनेका है। इस बातका उल्लेख प्रबन्धप्रणेताने स्वयं प्रकरणके प्रारम्भ-ही-में 'अथ श्रीवस्तुपालस्य २४ प्रबन्धमध्ये यन्नास्ति तदत्र किञ्चिल्लिख्यते।' यह पंक्ति लिख कर किया है । इससे यह भी ज्ञात होता है कि इसका प्रणयन, राजशेखरकृत प्रबन्धके पश्चात् हुआ है । इसका प्रणेता कौन है सो ज्ञात नहीं होता । प्रतिमें कहीं भी कर्ताका नामनिर्देश किया हुआ नहीं मिला । संघके भण्डारकी यह प्रति है बहुत पुरातन । यद्यपि इसमें लिपिकर्ता वगैरहका कोई उल्लेख नहीं होनेसे इसका लेखन-समय ठीक निश्चित नहीं कर सकते; तथापि इसकी स्थिति देखते हुए, संभवतः वि० सं० १५०० के पहले या उसके आसपास इसका समय सूचित किया जा सकता है। इस प्रबन्धके प्रणेताने, प्रबन्धगत वृत्तान्तोंमेंसे बहुतसे तो B और P संज्ञक पुराने संग्रहों ही परसे नकल किये मालूम देते हैं। सिर्फ कहीं कहीं कुछ वृत्तान्त या पंक्तियों में न्यूनाधिकता दृष्टिगोचर होती है। ६१३. (६) परिशिष्ट __ प्रस्तुत संग्रहके अन्तमें, पृष्ठ ११६ से १३४ तक, प्रबन्धचिन्तामणिगुम्फितकतिपयप्रबन्धसंक्षेप इस शिरोलेखके नीचे जो १ परिशिष्ट दिया गया है उसकी मूल प्रति हमें अहमदाबादके डेलाके उपाश्रयवाले भण्डारमेंसे प्राप्त हुई है। इसकी पत्रसंख्या ५ है । अन्तमें 'श्रीजयसिंहप्रबन्धाः । ऐसा पुष्पिकावाक्य लिखा हुआ होनेसे भण्डारकी सूचिमें 'जयसिंहप्रबन्ध' के नामसे इसका निर्देश किया हुआ है । परंतु प्रतिका साद्यन्त अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि इसमें, प्रायः प्रबन्धचिन्तामणिसंकलित कितनेएक मुख्य मुख्य प्रबन्धोंका किसी विद्वान्ने संक्षिप्ती___x इस कण्डिकाका अन्तिम भाग,-पृ. ५१ की पंक्ति १२ से १७ तक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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