Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ ( २ ) तथान्यन्नारदीयंच मार्कंडेयं च सप्तमम् । श्राग्नेयमष्टमं चैव, भविप्यं नवमं स्मृतम् ॥ दशमं ब्रह्मवैवर्त लैङ्गमेकादशं स्मृतम् । वाराहं द्वादशं चैव स्कान्दं चात्र त्रयोदशम् ॥ चतुर्दशं वामनं च कौमपंचदशं स्मृतम् । मात्त्यं च गारुडं चैत्र ब्रह्माडं च ततः परम् ॥ [विष्णु पु०३ अं०६०] अर्थात्-त्राह्म, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, नारदीय, मारकण्डेय, आग्नेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कन्ध, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़ और ब्रह्माण्ड ये अठारह पुराण प्रन्थ हैं। इनको श्लोक संख्या का परिमाण भी भागवत और मत्स्य पुराण में दिया है। पाठक वहां देख लें। [पुराणों की प्राचीनता] पुराण शब्द पर दृष्टिपात करने से प्रतीत होता है कि पुराण अत्यन्त प्राचीन हैं वेद-मंत्र ब्राह्मण-स्मृति इतिहास और पुराण सत्र में पुराण शब्द का उल्लेख देखने में आता है। अथर्व वेद, शतपथ ब्राह्मण वृहदारण्य और छांदोग्यादि उपनिपदों तथा मनुप्रादिस्मृतियों एवं मह भारत आदि इतिहास पुराण प्रन्यों में पुराण शब्द का सट उल्लेख पाया

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