Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ज्यों की त्यो पक्तियां उठाई है । वस्तुतः इन्ही पुस्तको के सहयोग से मैं इस पुस्तक की रचना कर सका है। अतः मैं इन ग्रन्थो और पुस्तकों के लेखक महानुभावो का हृदय से आभार मानता हू। जिनके सतत परिश्रम से लिखी पुस्तको का सहयोग पा कर मैं अपने मनोरथ को मूर्तरूप देने में सफल हो सका है। मैं हृदय से उनका अपने को अाभारी पाता है। इस पुस्तक के दूसरे खण्ड के एक अध्याय मे आपको विशेष रूप से स्थानकवासी परपरा द्वारा मान्य दृष्टि का परिचय मिलेगा। इस अध्याय मे यह दृष्टि जान बूझ कर रखो गई है । इस अध्याय को लिखने का मेरा उद्देश्य केवल स्थानकवासी युवको, युवतियो को स्था. नकवासी परम्परा की मान्यताप्रो और शिक्षाओ से शिक्षित करना है। इसलिए इस पुस्तक मे साम्प्रदायिकता की भावना देख कर चौकने की आवश्यकता नही है। अपनी मान्यताप्रो तथा मर्यादाओ से अपने सा. माजिक लोगो को परिचित कराना मेरी दृष्टि मे कोई बुराई नहा है। इस पुस्तक की प्रेस कापो बनाने मे धर्मोपदेष्टा श्रद्धेय महासती श्री चन्दा जी महाराज को सुयोग्य शिष्यानुशिष्याए विदुपो महासती श्री लज्जावती जी महाराज तथा तपस्विनी श्री सौभाग्यवती जी महाराज की शिष्याए श्री सीता जो महाराज, श्री कौशल्या जी महाराज, श्री महेन्द्रा जी महाराज इन पूज्य साध्वियो का प्रर्याप्त सहयोग प्राप्त रहा है। इनमे भी श्री महेन्द्रा जी महाराज का सहयोग चिरस्मरणीय रहेगा, जो अस्वस्थ होते हुए भी इस कार्य मे आशातीत अपना सहयोग देती रहो हैं । मैं इस महासती-मण्डल का हृदय से ग्राभारी हूँ। इस पुस्तक के सम्पादक हमारे मान्य लेखक पण्डित मुनि श्री समदर्शी जी हैं। श्री समदर्शी जी के पास बनारस में मैंने सामग्री भेज

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 385