Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 9
________________ अपनी बात एक वार मुझे जण्डियाला गुरु (अमृतसर) जाने का अवसर मिला। वहां रात्रि को युवक-मण्डल को जन-धर्म-सम्बन्धी जानकारी कराने का मौका भी प्राप्त हुा । यह जानकारी प्रश्नोत्तर के रूप में चलती थी। कभी मैं स्वय उनसे प्रश्न पूछता फिर उन को उनके उत्तर समझा देता, कभी वे मुझ मे अपने प्रश्नो का समाधान मागते। इस प्रकार जान-चर्चा करने से वडा अच्छा हचिपूर्ण वातावरण बन जाता था। एक दिन एक युवक ने कहा कि इस प्रकार की जानचर्चा से जो हमे जानकारी प्राप्त होती है उसे चिरस्थायी बनाए रखने के लिए एक ऐसी पुस्तक होनी चाहिए, जिस मे जैनधर्म-सम्बन्धी मोटे मोटे सभी प्रश्नो का समाधान किया गया हो और जिसके स्वाध्याय से हम, क्षेत्र मे साधु मुनिराजो के विराजमान न होने पर भी ज्ञानचर्चा का लाभ प्राप्त कर सके । मुझे भी उस युवक की वात पसन्द आई। मैंने भी सोचा कि साहित्य के विना समाज का कभी विकास नही हो सकता, उस के सैद्धांतिक विचारो तथा आचारो को जनमानस तक पहुंचाने के लिए योग्य साहित्य की नितान्त आवश्यकता हुया करती है। परिणामस्वरूप मैंने उस युवक को आश्वासन दिया और साधुभाषा मे कहा कि मैं इस काम की पूर्ति के लिए यथाशक्य प्रयास करूगा। जण्डियाला से विहार होने पर अमृतसर, पट्टी, जीरा आदि क्षेत्रो मे भ्रमण करते हुए अन्त मे श्रद्धेय जनधर्म-दिवाकर, आचार्य-सम्राट गुरुदेव पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के चरणो मे लुधियाना पहुच गए और यही आचार्य श्री की सेवा मे चातुर्मास हो गया। जण्डियाला को बात मुझे भूली नही थी और लुधियाना आने पर तो उस मे और

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