Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 10
________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक प्रथम परिच्छेद मंगलाचरण रागद्वेषविजेतारं, ज्ञातारं विश्ववस्तुनः । शक्रपूज्यं गिरामीशं, तीर्थेशं स्मृतिमानये ।। अर्थ-राग और द्वेष को जीतने वाले वीतराग, समस्त वस्तुओं को जानने वाले सर्वज्ञ, इन्द्रों द्वारा पूजनीय तथा वाणी के स्वामी तीर्थंकर भगवान् को मैं स्मरण करता हूँ। विवेचन-ग्रंथ-रचना में आने वाले विघ्नों का निवारण करने के लिए आस्तिक ग्रंथकार अपने ग्रंथ की आदि में मंगलाचरण करते हैं। मंगलाचरण करने से विघ्न-निवारण के अतिरिक्त शिष्टाचार का पालन भी होता है और कृतज्ञता का प्रकाशन भी।। । प्रस्तुत मंगलाचरण में 'तीर्थेश' का स्मरण किया गया है। साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, यह चतुर्विध संघ तीर्थ कहलाता है। तीर्थ के स्वामी को तीर्थेश कहते हैं। तीर्थेश के यहां चार विशेषण हैं। यह विशेषण क्रमशः उनके चार मूल अतिशयों अर्थात् विशिष्टताओं के सूचक हैं। चार

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