Book Title: Prakrit Vidya 1999 07 Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain Publisher: Kundkund Bharti Trust View full book textPage 8
________________ चुनाव होते हैं तथा समय-समय पर मीटिंगों में ट्रस्टीगण संस्था की गतिविधियों की समीक्षा करते हुए इसके कार्यों, योजनाओं को स्वीकृति देते हैं। ___ इस संस्था को भूमि राजधानी के शैक्षणिक क्षेत्र में अपेक्षित थी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री भद्रपरिणामी धर्मानुरागिणी श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने इसे भूमि प्रदान करायी, जिस पर इस संस्था का परिसर एवं भवन आज विद्यमान है। इस संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष धर्मानुरागी स्व० श्री कश्मीरचंद जी गोधा ने स्वयं खड़े रहकर निरीक्षण करते हुए उत्तम सामग्री से तीन वर्ष में इसका निर्माण कार्य कराया। संस्था के स्थायित्व के लिए अपेक्षित आर्थिक संसाधनों की अनवरतता भी अपेक्षित थी, तो आदरणीय धर्मानुरागी समाजसेवी साहू श्री अशोक जैन जी की अध्यक्षता में इस संस्था की प्रारंभिक अनिवार्य आवश्यकताओं के अनुरूप ध्रुवफंड बनाया गया। साथ ही विद्वद्वर्य स्व० पं० बलभद्र जी के निर्देशन में महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों की परम्परा प्रवर्तित हुई, जिसमें प्रारंभिक वर्षों में समयसार, नियमसार, द्रव्यसंग्रह जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के उपयोगी संस्करण प्रकाशित हुये। जैन-परंपरा की मूलभाषा तथा भारतवर्ष की प्राचीनतम जनभाषा शौरसेनी प्राकृत के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार के निमित्त 'प्राकृतविद्या' नामक त्रैमासिकी शोध-पत्रिका का प्रकाशन-कार्य भी इस संस्था के द्वारा किया जा रहा है। इसका शुभारंभ आचार्य कुन्दकुन्द के द्विसहस्राब्दी वर्ष के शुभ अवसर पर वरिष्ठ विद्वान् प्रो० प्रेमसुमन जैन, उदयपुर (राज०) के संपादकत्व में हुआ था, फिर दिल्ली से इसे पं० बलभद्र जी का संपादकत्व प्राप्त हुआ। उनके उपरान्त यह डॉ० सुदीप जैन के संपादकत्व में एक सुयोग्य संपादक-मंडल के निर्देशन में निरन्तर प्रगतिशील है। इसी संस्था के द्वारा शौरसेनी प्राकृतभाषा के विकास की दृष्टि से प्रथमत: श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली-16 में ‘आचार्य कुन्दकुन्द-स्मृति व्याख्यानमाला' की स्थापना की गयी, जिसके अन्तर्गत प्रतिवर्ष किसी एक वरिष्ठ विद्वान् के शौरसेनी प्राकृतभाषा एवं साहित्य के विविध पक्षों में से किन्हीं दो बिन्दुओं पर सारगर्भित एवं शोधपूर्ण व्याख्यान गरिमापूर्वक आयोजित किये जाते हैं। विश्वविद्यालय के नियमानुसार ही आमंत्रित विद्वान् का सम्मान भी किया जाता है। उल्लेखनीय बात यह है कि इस आयोजन में दिल्ली के स्थानीय विद्वानों के अतिरिक्त विद्यापीठ से सभी विभागों के वरिष्ठ विद्वान्, शोधछात्र, छात्र-छात्रायें एवं जिज्ञासुगण सम्मिलित होते हैं। समाजसेवा एवं साहित्याराधना में अपना जीवन समर्पित करनेवाले विद्वानों को कृतज्ञभाव से सम्मानित कर उनकी यशोगाथा से समाज को परिचित कराने की दृष्टि से इस संस्था के तत्त्वावधान में दो प्रमुख पुरस्कार प्रतिवर्ष दिये जाते हैं। प्राकृतभाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करनेवाले विद्वान को 'आचार्य कुन्दकुन्द पुरस्कार' तथा संस्कृतभाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करनेवाले विद्वान् को 'आचार्य 106 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99Page Navigation
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