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किन्तु एक सहृदय साहित्यिक विज्ञान के द्वारा रचित साहित्यिक विज्ञान सबधी ऐसी निर्देशात्मक पुस्तक के अवलोकन से जिस बात पर साश्चर्य खेद हुआ वह यह है कि इस पुस्तक मे भी जैन साहित्य की उपेक्षा ही की गई है
और उसके प्रति अन्याय भी हुआ है। पुस्तक में निर्देशित लगभग ४,५०० लेखको मे से केवल ५० लेखक जेन है जिनमे २० ऐसे हैं जिन्होने जैन सबधी कुछ नही लिखा, और यदि उनमे से किसी की कोई जैन रचना है भी तो उनका उल्लेख नहीं किया गया, शेष ३० लेखको मे दो हजार वर्ष प्राचीन आचार्य कुन्दकुन्द से लेकर अाधुनिक काल के अति गौण लेखक तक सम्मिलित है । कुल ७०-७५ जैन पुस्तको का उल्लेख है जिनमे सस्कृत, प्राकृत, अपभ्र श एव हिन्दी के मौलिक तथा टीका अनुवादादिक और कथा कहानी, पूजा पाठ, पद भजन, अध्यात्म, तत्वज्ञान, निमित्त शास्त्र आदि कितने ही विषयो के दिगम्बर, इवेताम्बर, स्थानक वासी सभी सम्प्रदायो के एक-एक दो-दो ग्रन्थ बानगी के लिए दे दिये गये है । इन गिने चुने लेखको और उनकी कृतियो के परिचय भी बहुधा दोष पूर्ण एव भ्रामक है, उदाहरणार्थ, कुन्दकुन्दाचार्य कृत 'समयसार' को नाटक लिखना, 'बारह मामा नेमिनाथ' पुस्तक को केवल बारह मासा लिखकर उसके लेखक के रूप मे नेमिनाथ को लिखना, 'जैन रामायण' के कर्ता का नाम रामचन्द्र के स्थान पर हेमचन्द्र लिग्वना, कवि वृन्दावन दास कृत 'अर्हत पाशा केवलि' नामक शकुन शास्त्र को प्राचीन युग का एक जीवन चरित्र (1) लिखना। 'जाति की फेहरिस्त' और 'अग्रवालो की उत्पत्ति' जैसी पुस्तको को 'धर्म-तत्कालीन' विषय के अन्तर्गत तथा 'जन स्तवनावली' और 'जैनग्रन्थ सग्रह' जैसे प्रकी
कस्फुट पाठ सग्रहो को 'साहित्य का इतिहास-तत्कालीन' विषयके अन्तर्गत देना, इत्यादि । और यह तब जबकि सम्पादक महोदय को जैन माहित्य की पूर्वोल्लिखित इतिहास पुस्तके और ग्रन्थ सूचिये आदि तथा कम से कम प० नाथूराम प्रेमी के जैन ग्रन्थ कार्यालय के वृहन्मूचीपत्र के अतिरिक्त, जोकि मब सहज सुलभ थे, किसी भी अच्छी जैन साहित्यिक सस्था अथवा प्रकाशन मस्था या एक वा अधिक जैन साहित्यिको से ही पत्र व्यवहार द्वारा प्रकाशित जैन