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शोधन एव समय के अभाव के कारण प्रस्तुत पुस्तक मे श्वेताम्बर साहित्य को सम्मिलित नहीं किया गया और प्रधानतया दिगम्बर समाज की ही मुद्रित प्रकाशित पुस्तको का विवरण दिया गया है ।
मुद्रण कला का इतिहास--प्राचीन साहित्य की खोज करने वाले प्रसिद्ध विद्वान काका कालेलकर जी के शब्दो मे "यह बात बिल्कुल सही है कि जैसे लेखन कला के प्रचार से ज्ञान प्राप्ति का मार्ग सुलभ हुमा है वैसे ही छापने की कला के प्रचार से यह मार्ग सहस्त्र गुना अधिक सुलभ और विस्तृत हो गया है।” X जहा तक लेखन कला के प्रारभ का प्रश्न है वह सर्व प्रथम भारतवर्ष मे ही हुआ प्रतीत होता है। जैन अनुश्र ति के अनुसार कर्मयुग के आदि मे प्रादि पुरुष महा मानव ऋषभदेव ने अपनी प्रिय पुत्री ब्राह्मी के उपलक्ष से सर्व प्रथम मानवी लिपि का आविष्कार किया था। सिन्धु पुरातत्त्व मे उपलब्ध मुद्रालेख भी पाच छ हजार वर्ष प्राचीन है और उनसे अधिक प्राचीन लेख मसार के किसी अन्य भाग मे अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं । लेखनकला के सर्व प्राचीन उदाहरण पाषाण आदि पर ही अकित मिलते है। तत्पश्चात् ताम्रपत्र आदि धात्वी साधनो का भी उपयोग होने लगा। फिर ताडपत्र, भुर्जपत्र प्रादि वानस्पतिक पत्रो पर लिखाई आरभ हुई। अन्ततः सन ईस्वी प्रथम सहस्त्राब्द के मध्य के लगभग कागज का प्रयोग प्रारभ हुआ।
छापे खाने का सर्व प्रथम आविष्कार चीन देश मे हुआ, और सर्व प्रथम ज्ञात मुद्रित चीनी पुस्तक की मुद्रण तिथि ११ मई सन् ८६८ ई० है। इस पुस्तक की छपाई ब्लाक प्रिन्टिग मे हुई थी, किन्तु अलग अलग बने टाइपो से छापने की कला का आविष्कार चीन देश मे ही पो. शेग नामक व्यक्ति के द्वारा सन् १०४१-४६ के मध्य हुआ । यूरोप मे मुद्रण का प्रारभ जर्मनी देश के निवासी जॉन गटेनबर्ग नामक व्यक्ति ने १५ वी शाताब्दी ई. के मध्य मे किया था।
x प्रमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १६७,