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भारतवर्ष मे छापेखाने का प्रथम प्रवेश पुर्तगाली उपनिवेश गोभा के सेंट पॉल कालिज मे, जेसुइट पादरियों की अध्यक्षता मे जुझान बुस्टामान्टे नामक मुद्रक द्वारा सन् १५५६ ई० मे हुआ । और भारत मे मुद्रित सर्व प्रथम पुस्तक
तीनी भाषा की 'कनक्लूसोस फिलोसोफिकास' नामक दार्शनिक पुस्तक थी जो उसी वर्ष उक्त छापेखाने में छपी थी । यह पुस्तक तथा इसके बाद छपने वाली दूसरी पुस्तक भी अब उपलब्ध नही हैं । भारतवर्ष मे मुद्रित सर्व प्रथम उपलब्ध पुस्तक उसी मुद्रणालय मे सन् १५६० मे छपी 'कोम्पेंदिपु स्पिरितु आलद व्हिद क्रिस्ती' है जो न्यूयार्क (अमेरिका) के राष्ट्रीय सार्वजनिक पुस्तकालय में विद्यमान है ।
इसके कुछ काल पश्चात् गोत्रा प्रदेश के अन्तर्गत ही रायतूर नामक स्थान के सेंट इग्नेशस कालिज मे एक अन्य मुद्रणालय चालू हुआ जिसमें भारतीय भाषा मे भी पुस्तके छपने लगी । इस छापेखाने मे मुद्रित भारतीय भाषा की सर्व प्रथम ज्ञात पुस्तक फादर थॉमस स्टीफेन्स कृत 'क्राइस्ट पुराण' थी । यह पुस्तक मराठी भाषा मे प्रोवी नामक छन्द विशेष मे लिखी गई थी किन्तु रोमन लिपि मे थी, और यह सन् १६१६ ई० मे मुद्रित हुई थी । चालीस वर्ष के बीच मे इसके क्रमश तीन सस्कररण प्रकाशित हुए थे, किन्तु उनकी एक भी प्रति आज उपलब्ध नही है, यद्यपि उसकी रोमन, कन्नडी, देवनागरी लिपियो में निबद्ध अनेक हस्तलिखित प्रतिया विद्यमान है उसी छापेखाने से सन् १६२२ मे मुद्रित 'ख्रिस्ती धर्म सिद्धान्त' नामक मराठी भाषा और रोमन लिपि की पुस्तक आज भी उपलब्ध है । इसके उपरान्त डेनिश मिशनरियो और फिर अ ग्रेज पादारियो ने इस दिशा मे प्रयत्नशील होकर छापेग्वाने के प्रचार में योग दिया ।
देवनागरी अक्षरों में ब्लाक प्रिंटिंग से छपा सर्व प्रथम लेख सन् १६७८. ई० का है । सन् १७९६ ई० मे लिथोग्रफी का श्राविष्कार हुआ । उनमे टाइप बनाने की कठिनाई न होने के कारण शीघ्र ही उसका अत्यधिक प्रचार हो गया और १६ वी शताब्दी में तो देशी भाषाश्रो के अनेक प्राचीन ग्रथ लिथो से छुपे । १८ वी शताब्दी के अन्त के लगभग ही बम्बई और बंगाल मे सर्व