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किया । कालान्तर मे सभा की नीति से मतभेद होने के कारण कुछ अधिक सुधारवादी सज्जनों ने जैन यंग मेन्स एसोसियेशन (भारत जैन महा मडल) की स्थापना की, जिसने जैन गजट नाम से ही प्रग्रेजी भाषा मे अपना एक मासिक पत्र निकालना प्रारभ किया। हिन्दी जैन गजट अभी तक महा सभा की ओर से ही निकल रहा है। सन् १८६७ के अत मे महा सभा ने अपने एक अधिवेशनमे बालिका शिक्षाके पक्षमे भी प्रस्ताव पास कर दिया था। महासभा के प्रचारक ग्राम २ मे पहुचे। उदाहरणार्थ लेखक के मातामह स्व० ला. शिताबराय जी ने, जो जिला मेरठ की तहसील बागपत, परगना बडौत के सुदूरस्थ ग्राम ख्वाजा नगला के निवासी थे और महासभा के एक उत्साही सदस्य मौर कार्यकर्ता थे, आस पास के कितने ही प्रामो के जैनियो मे शिक्षा प्रचार का स्तुत्य प्रयत्ल किया था और कई एक जाट, बढई प्रादि अजैनो को जैनी बनाया, जो कि आजन्म इस धर्म के भक्त रहे।
इसी युग मे शोलापुर के प्रसिद्ध समाज सेवी सेठ रावजी हीराचन्द नेमचन्द दोशी ने समय की आवश्यकता का अनुभव करते हुए, सितम्बर सन् १८८४ ई० मे 'जैन बोधक' नामक मराठी-हिन्दी-गुजराती पत्र की स्थापना की थी। सन् १८९३ मे दि० जैन महासभा के मथुरा में होने वाले चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन मे जब छापे के प्रश्न को लेकर घोर वादविवाद हुआ तो उक्त राव जी ने छापे का जोरदार समर्थन किया था और उसी समय से उन्होने अपने जैन बोधक मे शास्त्रीय प्रमाणो और युक्तियो के द्वारा छापा पान्दोलन को अत्यधिक प्रोत्साहन देना प्रारम्भ कर दिया। महासभा के इसी अधिवेशन मे प्रबल विरोध के रहते हुए भी छापे के पक्ष मे प्रस्ताव पास हो गया तथा महासभा के मुख पत्र जैन गजट के निकाले जाने की योजना हुई।
इसी समय प्राचीन पार्ष सैद्धान्तिक ग्रन्थो के अध्ययन की प्रवृत्ति भी चल पड़ी जिसमे पं० गोपालदास जी बरैया विशेष सहायक हुए। अभी तक दिगम्बर आम्नाय मे पागम के रूप में अन्यराज गोमट्टसार की ही प्रसिद्धि मोर प्रचलन था, किन्तु अब यह बात सुस्पष्ट रूप से प्रकाश मे माई कि गोमट्ट