Book Title: Prakashit Jain Sahitya
Author(s): Pannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 301
________________ (२९) १० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १६, २० १९२८ । हयाते रिषभ (नस्म)-ले० दबीरे कौम ला० भोलानाथ मुख्तार, प्र० बैन मित्र मंडल देहली, पृ०१६, ब० १९३१, मा० अव्वल । मराठी भाषा को पुस्तके अन्य धर्मापेक्षा जैन धर्मातील विशेषता-अनु० श्री मानन्द ऋषि जी, पृ० ३६, ३० १९२८ । अमित गति श्रावकाचार-अनु० कलप्पा भरमप्पा निटवे, पृ० ४१५, २० १९१४॥ आत्मोन्नतिचा सरल उपाय-ले० प्रानन्द ऋषि, पृ० ५१, २० १९२७ । उपसका चार-अनु० कलप्पा भरमप्पा निटवे; पृ०६४, १० १६०४ ॥ उपासकाध्ययन (रत्न करड श्रावका चार)-अनु० नाना रामचन्द्र नाग, पृ० २४, २०१६२२ । कुन्दा कुन्दाचार्यांचे चरित्र-ले० तात्या नेमिनाथ पागल, पृ० २७, २० क्रिया मजरी-अनु० कलाप्पा भरमप्पा निटवे, पृ० १२८, २० १६०८ । गोमट्टसार (कर्म कांड)-अनु० नेमचन्द्र बाल चन्द्र गाधी, पृ० ५२३, २० १६२८ । जैन दशेन व जैन धर्म-ले. हर्बर्ट वारेन, अनु० प्रानन्द ऋषि, पृ० ३२, व. १६३८ । जैन धर्मामृत सार (२ भाग)-ले० नेमिचन्द्र सीताराम, पृ० ७६, ३० १८२६ । जैन धर्माचे अहिंसा तत्त्व-अनु० मानन्द ऋषि, पृ० २२ ० १९२६ । जैन धर्मा विषयो अजैन विद्वानाचे अभिप्राय (भाग १)-अनु० पानन्द ऋषि, पृ० ६७; व० १९२८ । जैन धर्मा विषयी अजैन विद्वानाचे अभिप्राय (भाग २)-अनु० मानन्द ऋषि; पु० ३६;व० १९२८ ।

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