________________
निबन्यो तथा स्वतन्य पुस्तकों के रूप में बंगरेषी जैन साहित्य का निर्माण
, बे० एल० बैनी, पं० मईनलाल सेठी, महात्मा भगवान हीन, मा० चेतनकास, बा० अजित प्रसाद आदि महानुभावों की जो भारत जैन महामंडल को लेकर एक सुहढ़ टीम बन गई थी उसके वास्तविक पारण थे। पारा निवासी कुमार देवेन्द्र प्रसाद, ये महा उद्यमी, निस्वार्थ एवं सच्चे 'स्वयं सेवक' थे और हिन्दी के भी सुलेखक थे। स्याद्वाद विद्यालय काशी के सन् १९१४ के वार्षिकोत्सव जैसे कई महत्त्व पूर्ण प्रायोजन इन्होंने किये जिनमें उच्च कोटि के संसार प्रसिद्ध देशी विदेशी जैन विद्वानों यथा डा० हर्मन जेकोबी डॉ वान ग्लेजने, प्रो० जे हर्टल, डॉ. एनी बेसेंन्ट, म० म० डॉक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण, डा० टी० के लड्डू, म० म०प्रो. राममिश्र, महर्षि शिववत लील
मन इत्यादि को निमन्त्रित करके जैन धर्म पर उनके महत्त्व पूर्ण ऐतिहासिक भाषण कराये और जैन साहित्य एवं कला की प्रदर्शनिये की। इन आयोजनों के परिणाम स्वरुप जैनधर्म के विषय में कम से कम जनतर विद्वत्समाज की अभिज्ञता तो बहुत बढ़ गई, उनके अनेक भ्रम दूर हो गये और यह धर्म तथा इसकी सस्कृति सम्मान पूर्ण अध्ययन की वस्तु समझे जाने लगे। कुमार देवेन्द्र प्रसाद जी के ही प्रयत्नो से 'सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, की स्थापना हुई और उससे 'सेक्रेड बुक्स आफ दी जेन्स' सीरीज का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसमे कि पंचास्तिकाय, समय सार, तत्त्वार्थ सूत्र, द्रव्य संग्रह, गोमहसार, परमात्म प्रकाश, नियमसार प्रादि कितने ही प्राचीन दिगम्बर जैन पार्ष ग्रन्थों के अंगरेजी अनुवादादि सहित उच्चकोटि के जैनाजन विद्वानों द्वारा सुसम्पादित संस्करण प्रकाश में पाये। मडल का मुख पत्र अंगरेजी जैन गजट भी बडे उपयोगी एवं आकर्षक रूप में निकलता रहा। मद्रासी, दक्षिणी, बंगाली, पजाबी-विभिन्न प्रान्तीय अनेक जैनाजैन विद्वानों ने इन कार्यों में महत्त्व पूर्ण योग दान दिया।
इसी युग में जैन धर्म के सच्चे मिशनरी और त्यागी सेवक स्वर्गीय ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी थे । वे धर्म प्रचार और समाजोन्नति के लिये तडपत हुए हृदय को लिये हुए देश के कोने कोने में-बर्मा, स्याम और लङ्का तक गये और स्थान स्थान मे सार्वजनिक सभाएं कराकर जैन धर्म की ओर सर्बसाधा