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प्राणि भानंदवृत्त' सन् १८६७ में और 'केसरी' सन १८६० में निकले ।
जैन सामयिक पत्रों मे सर्व प्रथम सम्भवतया गुजराती मासिक 'जन दिवाकर' था जो 'जैन श्वेताम्बर ग्रम्य गाइड' तथा 'जैन साहित्यनीसंक्षिप्त इतिहास' के अनुसार अहमदाबाद से श्री छगनलाल उमेदचन्द द्वारा वि० ० स० १९३२ (सन् १८७५ ई० ) मे प्रकाशित किया गया था और लगभग दश वर्षं चला सन् १८७६ में केशवलाल शिवराम द्वारा गुजराती 'जैन सुधारस' निकला जो एक वर्ष चलकर ही बन्द हो गया ।
दिगम्बर समाज का सर्व प्रथम सामयिक पत्र सन् १८८४ के प्रारम्भ में प० जीयालाल जैन ज्योतिषी द्वारा फर्रुखनगर ( उ० प्र० ) से प्रकाशित साप्ताहिक 'जैन' था । इसका वार्षिक मूल्य ढाई रुपये था, और यह हिन्दी भाषा का भी सर्व प्रथम जैन पत्र था, दश बारह वर्ष पर्यन्त चला भी । इन्ही पं० जीयालाल ने उसके कुछ ही समय पश्चात् उर्दू मे 'जीयालान प्रकाश' भी निकालना आरम्भ किया जो कि उर्दू का सर्वप्रथम जैनपत्र था । सितम्बर सन् १८८४ मे शोलापुर से स्वर्गीय सेठ रावजी हीराचन्द नेमचन्द दोशी ने मराठी - गुजराती हिन्दी का मासिक 'जैन बोधक' निकालना शुरू किया । यह पत्र मराठी का तो सर्व प्रथम जैन पत्र जीवित रहने के कारण वर्तमान जैन पत्रो मे भी सर्व प्राचीन है और इने गिने सर्वाधिकजीवी भारतीय पत्रो मे से एक है । इसके पश्चात् सन् १८८४ में ही जैनधर्म प्रवर्तक सभा अहमदाबाद से डाह्या भाई घोलशा जी के निरीक्षण मैं गुजराती 'स्याद्वाद सुधा' अप्रेल सन् १८८५ मे जैन हितेच्छुसभा भावनगर द्वारा 'जन हितेच्छु' और इसी वर्ष अहमदाबाद से गुजराती में श्वेताम्बर 'जैन धर्म प्रकाश' निकले, जिसमे से अन्तिम पत्र अभी तक चालू रहने के कारण वर्तमान श्वेताम्बर पत्रो मे सर्व प्राचीन है ।
था ही, अब तक
इसके पश्चात् तो जैन सामयिक पत्र हिन्दी, गुजराती, मराठी, डू, अग्रेजी, कन्नडी श्रादि भाषाम्रो मे दनादन निकलने लगे । केवल दिनम्बर