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स्थापत्य-जैन स्थापत्य का अध्ययन तो और भी कम हो गया है। विन्सेन्ट स्मिथ कृत 'मथुरा का जैन स्तूप तथा अन्य पुरातत्त्व' नामक ग्रन्थ बहुत महत्व पूर्ण है । आबू के जैन मन्दिरो पर पर्याप्त लिखा जा चुका है । फर्गुसन आदि ने भी प्रमगत जैन स्थापत्य पर किंचित प्रकाश डाला है किन्तु इस विषय का भी यथोचित अध्ययन अभी तक नही हो पाया है । स्तूप, निषद्या, मन्दिर, बसति, गुहा आदि विभिन्न रूपो तथा देश कालानुसार विविध शैलियो मे उपलब्ध जैन स्थापत्य की अपनी निजी सास्कृतिक विशेषताएं भी हैं।
इस प्रकार जनाध्ययन की कतिपय स्थूल शाखाम्रो का यह सक्षिप्त निर्देश है। अनेक जैन व अजैन विद्वान इन विषयो मे अपनी-अपनी रुचि एव साधन सुविधामो के अनुसार कार्य कर रहे है । कई एक साहित्यक अनुसधान सस्थाए और उत्तम कोटि की पत्र-पत्रिकाए भी चालू है । प्राच्याध्ययन के अन्तर्गत जैनाध्ययन का प्रारम्भ और बहुत काल तक नेतृत्व भी पाश्चात्य विद्वानो ने किया था । अत तत्सम्बन्धी साहित्य भी अगरेजी आदि विदेशी भाषामो मे ही लिखा जाता रहा है। किन्तु अब समय आगया है कि जैनाध्य्यन सम्बन्धी सर्व प्रकार के निर्देशात्मक ग्रथ कोष, सूचिये, विवरण, विवेचन, लेख, निबन्धादि राष्ट्रीय व लोकभाषा हिन्दी मे ही लिखे जॉय । इससे जैनाध्ययन को विशेष प्राप्ति मिलेगी, जो कि भारतीय संस्कृति के समुचित ज्ञान, मूल्यांकन एव विकास के लिये परमावश्यक है।
विज्ञप्ति जैन धर्म, संस्कृति, इतिहास पुरातत्व, प्रकाशित व अप्रकाशित साहित्य आदि से सम्बन्धित, सर्व प्रकार को जिज्ञासा के समाधान के लिये निम्नाकित सस्थानो, प्रकाशको तथा व्यक्तियो को पत्र लिखने से यथोचित उत्तर प्राप्त हो सकता है -- १. अधिष्ठाता, वीर सेवा मन्दिर, ७/२१ दरियागज, देहली।